प्रियंका गांधी, हिमाचल और पालिटिक्स के बदलते समीकरण

प्रियंका गांधी, हिमाचल और पालिटिक्स के बदलते समीकरण

प्रवीण सोनी,

 

चार साल पहले प्रियंका गांधी ने ऐक्टिव पालिटिक्स में कदम रखा था. बह टाईम था उत्तर प्रदेश में कॉंग्रेस पार्टी को मजबूत करना जो कि उस समय हाशिये पर खड़ी थी. यह एक बड़ी चुनौती भी थी और साथ में एक बड़ी जिम्मेदारी भी थी. प्रियंका गांधी ने उस समय इस जिम्मेदार को बखूबी निभाया और कॉंग्रेस पार्टी के नेताओं को अपने आने की सूचना भी दी.

उतर प्रदेश की राजनीति में काम करने के बाद प्रियंका गांधी ने अपनी टीम खड़ी की और उसका उपयोग उन्होंने हिमाचल प्रदेश के इलेक्शन में किया.

प्रियंका गांधी ने हिमाचल प्रदेश में अपने विश्वास पात्र राजीव शुक्ला को हिमाचल प्रदेश के इलेक्शन के लिए इनचार्ज बनाया पर इसके साथ ही छत्तीसगढ़ के सीएम बघेल को भी संचार और सोशल मीडिया और वन टू वन नेटवर्क की कमान संभालने की जिम्मेदारी दी. इससे कॉंग्रेस पार्टी नेतृत्व ने बड़ा दावं खेला और भीतरगात के नुकसान को नहीं होने दिया. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि प्रियंका गांधी की उत्तर प्रदेश की चार साल पहले की क़ि हुई मेहनत हिमाचल प्रदेश के इलेक्शन में काम आयी और बीजेपी पर भारी पडी. बीजेपी के नेता आपस में ही उलझे रहे और जिस पार्टी को अनुशाशन का तमगा लगा हो सबसे ज्यादा 21 बागी भी उसी पार्टी से निकले जिन्होंने पार्टी की जीत में सबसे बड़ा व्यवधान डाला.

प्रियंका गांधी ने हिमाचल प्रदेश की राजनीति की समझदारी को समझा और प्रदेश में अपनी किसी भी पोलिटिकल रैली में ना नरेंद्र मोदी का नाम लिया और ना ही किसी भी तरह से बीजेपी की किसी भी प्रकार की आलोचना की. प्रियंका गांधी ने अपना सारा ध्यान लोकल मुद्दों पर केन्द्रित किया और कॉंग्रेस की नीतियों की और अगर सरकार बनाते हैं तो प्रदेश की जनता के लिए क्या करेंगे पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया. प्रदेश में कॉंग्रेस पार्टी के करीब करीब पांच लोग सीएम उम्मीदवार के चेहरे थे और ऐसा माना जा रहा था कि इन सभी को साथ लेकर चलना मुश्किल भरा होगा. प्रियंका गांधी का सबसे बड़ा किया काम इन्हीं सभी को साथ लेकर चलना था और बड़ी बखूबी से उन्होंने अपने इस काम को आखरी अन्जाम तक पहुंचाया. शुरू से ही प्रियंका गांधी शिमला में रही और पार्टी के उम्मीदवार तय करने से लेकर रिजल्ट आने से पहले तक सभी काम सही समय पर किए.

टिकट वितरण के समय भी यह ध्यान रखा गया कि जितने वाले चेहरे कौन होंगे और कैसे उन्हें सपोर्ट किया जाएगा. प्रियंका गांधी ने हिमाचल प्रदेश में 7 रैली की जो कि पार्टी उम्मीदवार के लिए संजीवनी बूटी साबित हुई. प्रियंका गांधी ने अपनी किसी भी रैली में उभरती हुई “आप ” पार्टी का ना तो नाम लिया या ना उनकी अलोचना की. यही बात उन्होंने बीजेपी के लिय भी की और इसका सीधा असर आखिर में कॉंग्रेस पार्टी को मिला. प्रियंका गांधी की सोलन में की गई रैली ने कॉंग्रेस पार्टी के लिए टेंपो सेट कर दिया था और आगे की रणनीति में कॉंग्रेस पार्टी को एक्स्ट्रा एज दे दिया. बीजेपी ने इसके बाद में ही पीएम मोदी की भी रैली प्रदेश में की पर बह इसका पूरा बेनिफिट नहीं ले सके.

काँग्रेस पार्टी को हर इलेक्शन में बीजेपी से सेंधमारी का डर लगा रहा और बीजेपी ने कॉंग्रेस पार्टी के हर क्षेत्र में और हर राज्य में सेंधमारी की.

प्रियांका गांधी ने कॉंग्रेस पार्टी की जीत की इमारत यहीं से खड़ी कर दी थी जब उन्होंने पीछे से पोलिटिकल मैनेजमेंट
को ठीक तरीके से सम्भाला और फ्रंट से अपनी टीम को ग्राउंड लेवल पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया.

हिमाचल प्रदेश के इलेक्शन प्रियंका गांधी के लिए भी ट्रम्प कार्ड साबित होंगे ऐसा प्रतीत होता है. आने वाले समय में अगर हम प्रियंका गांधी को देश की राजनीति में बड़ा योगदान देते देखें तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए. कॉंग्रेस पार्टी भी आने वाले समय में प्रियंका गांधी कोई बड़ी जिम्मेदारी दे यह अब समय ही बतायेगा..

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