भारत की जी-20 अध्यक्षता: समावेशी विकास और सार्वभौमिक सह-अस्तित्व का संयोजन

भारत की जी-20 अध्यक्षता: समावेशी विकास और सार्वभौमिक सह-अस्तित्व का संयोजन

श्री आलोक कुमारसचिवविद्युत

भारत की जी-20 अध्यक्षता का केंद्रीय भाव- वसुधैव कुटुम्बकम, यानी सभी जीवित प्राणियों- मानव, पशु, पौधे और सूक्ष्मजीव और पृथ्वी पर इनके परस्पर संबंध के महत्व की पुष्टि करता है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री के शब्दों में, भारत की जी-20 की अध्यक्षता इस सार्वभौमिक सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने का प्रयास करेगी और इसलिए “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” इसका आदर्श वाक्य है।

जी-20 के नेतृत्व का अवसर ऐसे समय में आया है, जब अस्तित्व से जुड़े खतरे बढ़ रहे हैं और इनके स्थायी समाधान ढूंढने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों का समाधान करना, भारत की जी-20 की अध्यक्षता की सर्वोच्च प्राथमिकता है, जिसके तहत दुनिया के विकासशील देशों में जलवायु वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को समर्थन देकर न्यायोचित तरीके से ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोतों को अपनाने पर जोर दिया गया है। दुनिया के लिए सार्थक और स्थायी समाधान प्राप्त करने के उद्देश्य से, वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) की चिंताओं, आकांक्षाओं और मुद्दों को सामने रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि इनमें से कई देशों को महत्वपूर्ण मंचों पर अपनी बातें रखने का मौका नहीं मिलता है।

ऊर्जा क्षेत्र में आज दुनिया के सामने कई चुनौतियां हैं- पहुंच, सुरक्षा, उपयोग-सामर्थ्य से लेकर जलवायु परिवर्तन के वैश्विक मुद्दे तक। स्थायी ऊर्जा भविष्य के लिए इन मुद्दों को समग्र रूप में देखना महत्वपूर्ण है।

भारत, अपनी ओर से, कम कार्बन वाली विकास रणनीति के लिए प्रतिबद्ध है। भारत के ऊर्जा उत्पादन मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। आज, भारत पूरी दुनिया में नवीकरणीय ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसकी स्थापित बिजली क्षमता का 42.25 प्रतिशत हिस्सा, गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से आता है।

हम स्थापित क्षमता के मामले में चौथे सबसे बड़े देश हैं और दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते नवीकरणीय ऊर्जा केंद्रों में से भी एक हैं। भारत ने 2021 में नवीकरणीय क्षमता में वैश्विक स्तर पर सबसे तेज वृद्धि (70 प्रतिशत) दर्ज की है, जिसके तहत केवल नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश 2021 में 11.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। भारत के सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता भी 2005 के स्तर की तुलना से 28 प्रतिशत कम हो गई है।

भारत जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों के स्थायी समाधान ढूंढ़ने की दिशा में तेजी से कदम उठा रहा है। यह 2021 में ग्लासगो शिखर सम्मेलन में माननीय प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता के अनुरूप है, जहां 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक बिलियन टन तक कम करने की घोषणा की गयी थी। सीसीपीआई सूचकांक (जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक) में, भारत को शीर्ष प्रदर्शन करने वाले बड़े देशों में स्थान दिया गया है।

भारत, आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और एक अरब से अधिक लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। अनुमान है कि 2040 तक हमारी ऊर्जा की मांग दोगुनी से अधिक हो जाएगी। इस अनुमानित वृद्धि के साथ स्थायी बिजली उत्पादन, कार्बन उत्सर्जन को कम करने, ऊर्जा संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की जिम्मेदारी भी आती है।

सरकार ने देश के हर गांव और हर जिले को शामिल करते हुए सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण प्राप्त करने के उद्देश्य से सौभाग्य योजना- ‘सार्वभौमिक पहुंच के लिए योजना’ शुरू की। भारत ने 2019 के अंत तक रिकॉर्ड समय में सार्वभौमिक विद्युतीकरण हासिल किया, जिसके अंतर्गत कुल 28.6 मिलियन घरों का विद्युतीकरण किया गया।

भारत में ऊर्जा दक्षता को उच्च प्राथमिकता दी गयी है। नीतिगत तौर पर, व्यक्तिगत और संस्थागत, दोनों ही स्तरों पर ऊर्जा के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए कई पहलें की गयी हैं। उजाला (सभी के लिए सस्ते एलईडी द्वारा उन्नत ज्योति) योजना, 2015 में शुरू की गयी, जिसका उद्देश्य घरेलू उपभोक्ताओं को एलईडी बल्ब प्रदान करना था। इसका लक्ष्य 770 मिलियन तापदीप्त बल्बों को एलईडी बल्बों से बदलना था, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा एलईडी वितरण कार्यक्रम बन गया। यह कार्यक्रम, प्रकाश व्यवस्था में ऊर्जा दक्षता को लक्षित करता है, क्योंकि यह ऊर्जा बचाने के लिए बड़े पैमाने पर अवसर प्रदान करता है। एक और बेहद सफल योजना है, उज्ज्वला– जो परिवारों को एलपीजी कनेक्शन प्रदान करती है। यह योजना विशेष रूप से महिलाओं को सशक्त बनाती है, उनके द्वारा किये जाने वाले कठिन श्रम को कम करती है, रसोई की समयावधि में कमी लाती है और समग्र रूप से उनके स्वास्थ्य में सुधार करती है।

ऊर्जा संरक्षण अधिनियम के तहत, हमने विशिष्ट ऊर्जा खपत (एसईसी) को कम करने के उद्देश्य से पीएटी (कार्यक्रम निर्माण, प्राप्ति और व्यापार) योजना भी शुरू की, यानी, ऊर्जा गहन क्षेत्रों में नामित उपभोक्ताओं (डीसी) के लिए उत्पादन की प्रति यूनिट ऊर्जा का उपयोग तथा एक सम्बन्धित बाजार व्यवस्था के साथ अतिरिक्त ऊर्जा बचत, जिसका व्यापार भी किया जा सकता है, के प्रमाणीकरण के जरिये लागत प्रभावशीलता को बढ़ाना। अतिरिक्त ऊर्जा बचत को व्यापार योग्य उपकरणों में परिवर्तित किया जाता है, जिन्हें ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र (ई एस सी) कहा जाता है और इनका बिजली एक्सचेंजों में कारोबार किया जाता है।

हाल ही में, संसद ने ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किया है। विधेयक ऊर्जा दक्षता और संरक्षण को बढ़ावा देता है और यह निर्धारित करता है कि नामित उपभोक्ता, अपनी ऊर्जा या फीडस्टॉक की जरूरतों के एक निश्चित अनुपात को गैर-जीवाश्म स्रोतों से पूरा करने के लिए बाध्य हो सकते हैं। इमारतों के लिए ऊर्जा संरक्षण संहिता, अब 100 किलोवाट या उससे अधिक के भार वाले बड़े कार्यालयों और आवासीय भवनों पर लागू होगी। अधिनियम में अब कार्बन बाजार स्थापित करने के प्रावधान भी शामिल किए गए हैं। हमारे एनडीसी को पूरा करने के लिए देश में प्राथमिकता के आधार पर कार्बन क्रेडिट का उपयोग किया जाएगा।

भारत ने धीरे-धीरे आर्थिक विकास को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से अलग कर लिया है। इन निरंतर पहलों का समर्थन करने के लिए, भारत ने हाल ही में राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन शुरू किया है, जिसका उद्देश्य भारत को दुनिया के सबसे बड़े हाइड्रोजन हब के रूप में स्थापित करना है।

प्रौद्योगिकी की प्रगति और जलवायु परिवर्तन के उपायों को मिल रहा समर्थन दुनिया के ऊर्जा क्षेत्र में परिवर्तन को गति दे रहा है। भारत ने 2015 में पेरिस में आयोजित सीओपी-21 में बिजली उत्पादन का 40% हिस्सा, गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करने का वादा किया था। हमने इस लक्ष्य को 2030 की समय सीमा से काफी पहले 2021 में ही हासिल कर लिया है।

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में भारत ने लगातार नेतृत्व की भूमिका निभायी है। देश का विज़न है- 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन स्तर हासिल करना। अल्पावधि के लिए, देश ने 2030 तक गैर-जीवाश्म बिजली उत्पादन क्षमता को 500 जीडब्लू तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

जी-20 की अध्यक्षता में, भारत ने उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बनाई है जिनमें स्थायी जीवनशैली के लिए एक नया दृष्टिकोण लाने की क्षमता है। हम प्रौद्योगिकी के लिए मानव-केंद्रित दृष्टिकोण और कृषि से लेकर शिक्षा तक में- डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, वित्तीय समावेशन और प्रौद्योगिकी-सक्षम विकास जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए अधिक से अधिक ज्ञान साझा करने को बढ़ावा देने के प्रति अपने विश्वास को प्रदर्शित करने के लिए तत्पर हैं। हम समावेशी विकास को रेखांकित करने के लिए जी-20 मंच का उपयोग करना चाहते हैं।

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