हिमाचल ने लगाया वाटर सेस तो पंजाब हरियाणा क्यों बौखलाए

हिमाचल का हिस्सा चंडीगढ़ में किसने किसने मारा, यह कौन बताए ।

 

हिमाचल प्रदेश विधानसभा में इस बार के बजट में हिमाचल प्रदेश में लग रहे पनबिजली परियोजनाओं में वाटर सेस यानी पानी इस्तेमाल करने पर टैक्स लगाने की बात की गई ।जैसे ही यह बात मीडिया के माध्यम से पूरे देश में पहुंची तो तुरंत पंजाब और हरियाणा में इस बात को लेकर जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई दोनों राज्य हालांकि पानी बंटवारे के मुद्दे पर 50 सालों से अभी तक सहमत नहीं हो पाए हैं परंतु जब हिमाचल प्रदेश ने अपने हित की बात कही तो पूरी बात होने से पहले, पूरी बात समझने से पहले ही पंजाब और हरियाणा की दोनों विधानसभाओं ने हिमाचल प्रदेश से यह मांग कर डाली कि यह वाटर सेस न लगाया जाए। पहाड़ी राज्यों में विशेषकर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में जल एक बहुत बड़ा संसाधन है जिसका उपयोग पहाड़ी प्रदेशों में बहुत ही सीमित तौर पर किया जा सकता है नदियां इतनी गहरी हैं कि उनसे उठाऊ सिंचाई योजनाएं चलाई जाना काफी महंगा कार्य है । उत्तराखंड में भी कई नदियों को और वहां के लोग शाप भी मानते हैं और इस धारणा के पीछे यह कटु सत्य है कि इन नदियों का पानी पहाड़ के कोई भी काम नहीं आता है। गाद , सिल्ट और बर्फीला ठंडा पानी खेतों में सिंचाई के काम भी नहीं आता है। उल्टे कई बार लोगों को भूस्खलन और बाढ़ जैसी समस्याओं का अक्सर सामना करना पड़ता है।लगभग इसी तरह की स्थिति हिमाचल प्रदेश की नदियों की भी है यहां की बड़ी नदियां हिमाचल प्रदेश के किसानों को कृषि और बागवानी में लगभग न के बराबर ही योगदान करती हैं। ऐसे में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पन बिजली परियोजनाओं ने पहाड़ी राज्यों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दोनों राज्यों में पनबिजली उत्पादन की बहुत बड़ी क्षमता मौजूद है । हिमाचल प्रदेश में तो सभी सरकारों ने पनबिजली उत्पादन के लिए प्रयास किए और यह प्रयास अभी भीजारी हैं। पनबिजली उत्पादन से जहां बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला है वही इन बड़ी पनबिजली परियोजनाओं से विशेषकर सतलुज जल विद्युत परियोजना से हिमाचल प्रदेश को काफी राजस्व भी प्राप्त होता है। इससे हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है। वर्तमान सरकार द्वारा इस बार प्रदेश में जनता के साथ लंबे चौड़े वायदे किए गए हैं ।इन वायदों को पूरा करने के लिए कहीं न कहीं से तो राजस्व प्राप्त किया जाना है और अगर यह राजस्व बिजली परियोजनाओं से प्राप्त किया जाता है तो उसका हिमाचल प्रदेश के लोगों पर सीधे तौर पर कोई बोझ नहीं पड़ता है। वाटर सेस लगने से सरकार को भी काफी आमदनी होने की उम्मीद जगी है ऐसे में पड़ोसी राज्यों की चीख पुकार निश्चित तौर पर हिमाचल वासियों को पीड़ा पहुंचाती है। प्रत्येक राज्य अपने संसाधनों का अपनी जनता की भलाई के लिए जन कल्याण के लिए अधिकतम उपयोग करना चाहता है ।पंजाब भी अगर ऐसा करना चाहे तो हिमाचल के लोगों को उस में क्यों कोई पीड़ा होगी। हरियाणा करना चाहे तो हिमाचल के लोगों को क्यों पीड़ा होगी। किसी एक प्रदेश के विकास का मतलब है पूरे देश का विकास। हिमाचल के पड़ोसियों को यह बात समझनी होगी कि यदि हिमाचल के लोग अपना हक ऊंची आवाज में नहीं उठाते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि हिमाचल की आवाज को दबाया जाए। पंजाब हरियाणा में जो पानी बह रहा है वह कहीं न कहीं हिमाचल से आ रहा है। अगर आज हिमाचल के पानी से पंजाब हरियाणा में समृद्धि आ रही है तो यह हिमाचल के लोगों के लिए खुशी की बात है और हिमाचल के लोगों ने कभी इस बात का विरोध भी नहीं किया। पंजाब हरियाणा के नेता और बहुत कम लोग जानते होंगे कि जो विद्युत परियोजनाएं हिमाचल में लगी है। हैं वह चाहे भाखड़ा हो या अन्य परियोजनाएं हैं उनकी वजह से हिमाचल प्रदेश के लाखों लोग विस्थापित हुए। उनकी जमीनें उजड़ी और आज तक यह लोग दर बदर की ठोकरें खा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश की चुप्पी को कमजोरी न समझा जाए। इस बात का एक दुखद पहलू यह भी है कि हिमाचल के नेताओं ने चाहे वे किसी भी दल के रहे हो उन्होंने कभी भी बड़ी संजीदगी के साथ हिमाचल के हकों को हरियाणा पंजाब के समक्ष नहीं रखा है और यदि रखा भी है तो दबे सुर में रखा है कभी मुखर होकर अपनी बात मनवाने की कोशिश ही नहीं की गई है।अच्छे पड़ोसी एक दूसरे की भावनाओं की कदर करते हैं और यह सिलसिला हमेशा बना रहना चाहिए। पंजाब और हरियाणा का केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पर पूरा कब्जा है हिमाचल का 7,19% हक दोनों पड़ोसियों द्वारा हिमाचल को दिया जाना चाहिए। दोनों बड़े राज्य हिमाचल जैसे छोटे राज्य का हक मारें यह उचित नहीं है और यह व्यवस्था ज्यादा दिन चलने वाली भी नहीं है। जिस दिन सब लोग अपनी अपनी हकों की बात करेंगे उस दिन हिमाचल प्रदेश को भी अपने हक के बारे में जोर शोर से अपनी बात कहनी होगी और मनवानी भी होगी। यह बात केवल वाटर सेस तक ही सीमित नहीं है इसके हिमाचल के विकास और उसकी जरूरतों से जुड़े अनेक विषय भी शामिल हैं। इन सभी विषयों पर हिमाचल पंजाब और हरियाणा को मिलकर बात करनी चाहिए और खुले मन से हिमाचल का हक हिमाचल को देना चाहिए।

(धर्मेंद्र ठाकुर पूर्व उप निदेशक सूचना जनसंपर्क विभाग, यह लेखक के निजी विचार हैं)

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