हिमाचल प्रदेश में मानसून की तबाही थमने का नाम नहीं ले रही है। सोमवार रात राजधानी शिमला में हुई मूसलाधार बारिश ने जनजीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया। रातभर चली तेज बरसात के कारण शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों में कई जगह भूस्खलन हुए और भारी संख्या में पेड़ जड़ों समेत उखड़कर सड़कों और वाहनों पर आ गिरे। हिमलैंड, बीसीएस, महेली और अन्य इलाकों में हालात इतने भयावह हो गए कि स्थानीय लोगों को घरों से निकलना तक मुश्किल हो गया।
बारिश और भूस्खलन के कारण कई वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। रातभर प्रशासन और नगर निगम की टीमें सड़कों से मलबा हटाने और पेड़ों को काटकर रास्ता साफ करने में जुटी रहीं, लेकिन मंगलवार सुबह तक भी कई स्थानों पर हालात जस के तस बने रहे। सुबह-सुबह स्कूल जाने वाले छात्रों और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए निकलने वाले यात्रियों को घंटों जाम में फंसा रहना पड़ा। राजधानी की जीवन रेखा कहे जाने वाले कई प्रमुख मार्ग बंद होने से न सिर्फ शहरी क्षेत्र बल्कि ग्रामीण इलाकों से आने-जाने वाले लोगों को भी भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा।
भूस्खलन ने न केवल आवागमन को ठप किया है बल्कि कई इलाकों में घरों और दुकानों की दीवारों तक को खतरा पैदा कर दिया है। हिमलैंड और बीसीएस जैसे घनी आबादी वाले इलाकों में मलबा सड़कों और घरों के करीब तक पहुंच गया। स्थानीय निवासियों ने प्रशासन से गुहार लगाई है कि अस्थायी इंतज़ामों से आगे बढ़कर स्थायी समाधान किया जाए। लोगों का कहना है कि हर साल मानसून में यही हालात होते हैं और सरकारी दावे केवल कागज़ों तक ही सीमित रह जाते हैं।
राष्ट्रीय राजमार्गों पर यातायात पूरी तरह बाधित होने से प्रदेश की आर्थिक गतिविधियाँ भी प्रभावित हुई हैं। शिमला से बिलासपुर, मंडी और सोलन की ओर जाने वाले रास्तों पर जगह-जगह गाड़ियों की लंबी कतारें लगी रहीं। पर्यटक जो छुट्टियाँ बिताने शिमला आए थे, वे भी इस अव्यवस्था में फंसे रहे और उन्हें होटल लौटना पड़ा।
मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि फिलहाल राहत की उम्मीद नहीं है। विभाग ने मंगलवार को भी छह जिलों—बिलासपुर, कांगड़ा, मंडी, शिमला, सोलन और सिरमौर—के लिए भारी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया है। विभाग ने आशंका जताई है कि कुछ इलाकों में गरज-चमक के साथ तेज बारिश हो सकती है, जिससे भूस्खलन और पेड़ गिरने की घटनाएं और बढ़ सकती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार हो रही बारिश से पहाड़ियों की मिट्टी ढीली पड़ चुकी है, जिसके चलते भूस्खलन का खतरा और भी बढ़ गया है। यह स्थिति न केवल मौजूदा मानसून के दौरान बल्कि आने वाले महीनों में भी संकट पैदा कर सकती है। ऐसे में शहरी नियोजन, जल निकासी व्यवस्था और संवेदनशील ढलानों पर निर्माण गतिविधियों को लेकर गंभीर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
लोगों की पीड़ा इस बात से भी झलकती है कि बारिश के चलते जनजीवन पूरी तरह ठहर गया है। दिहाड़ी मजदूर काम पर नहीं जा पा रहे, स्कूली बच्चे और अभिभावक रोज़ाना मुसीबत झेल रहे हैं और व्यापारियों का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो गया है। राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन राहत और बचाव कार्यों में जुटे होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन आम लोगों का कहना है कि हर साल की तरह इस बार भी केवल अस्थायी व्यवस्थाओं पर भरोसा किया जा रहा है।
शिमला और आसपास के क्षेत्रों में बारिश की यह तबाही एक बार फिर सवाल खड़े करती है कि क्या राज्य लगातार बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयार है। जब तक ठोस नीतिगत कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक हर बरसात हिमाचल के लोगों के लिए भय और विनाश की नई कहानी लेकर आती रहेगी।
यह एक वेब जनित समाचार रिपोर्ट है।