हिमाचल प्रदेश में कुल्लू जिला इन दिनों एक संवेदनशील और गंभीर मुद्दे को लेकर चर्चा में है। सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट स्थगन आदेश के बावजूद, जिला वन अधिकारी (DFO) कुल्लू द्वारा गरीब किसानों के सेब के पेड़ों को बेरहमी से काटा गया है। यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ — जिसकी अध्यक्षता स्वयं भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) कर रहे हैं — द्वारा पारित आदेश की सीधी अवहेलना मानी जा रही है। इस फैसले में विशेष रूप से हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाई गई थी, जिसमें अतिक्रमित वन भूमि से सेब के पेड़ हटाने और काटने के निर्देश दिए गए थे।
पूर्व विधायक एवं जन अधिकारों के मुखर आवाज माने जाने वाले राकेश सिंघा ने इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि यह घटना न केवल संवैधानिक नियमों का उल्लंघन है, बल्कि गरीब किसानों की आजीविका और हिमाचल प्रदेश की जैविक विरासत पर भी सीधा प्रहार है। उन्होंने कहा कि “यह बेहद खेदजनक है कि कुल्लू में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नजरअंदाज करते हुए वन विभाग ने गरीब किसानों के फलदार सेब के पेड़ों को बेरहमी से काट डाला। यह कानून के शासन की हत्या है।”
सिंघा ने यह भी कहा कि किसी भी भूमि से बेदखली तभी की जा सकती है जब पहले उस भूमि का स्वामित्व (टाइटल) तय किया गया हो। उन्होंने सवाल उठाया कि जब भूमि विवाद का फैसला ही नहीं हुआ, तब वन विभाग को किस अधिकार से पेड़ काटने की अनुमति मिल गई?