हिमाचल प्रदेश के किसानों और सेब उत्पादकों को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से एक बड़ी राहत मिली जब सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल हाईकोर्ट के उस आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी, जिसमें अतिक्रमण की गई वन भूमि से सेब के पेड़ों को हटाने और काटने का निर्देश दिया गया था। यह आदेश न्यायमूर्ति बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने पारित किया, जो पूर्व उपमहापौर टिकेंद्र सिंह पंवर द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका की पैरवी सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता सुभाष चंद्रन ने की।
याचिका में यह कहा गया कि हाईकोर्ट का आदेश न केवल असंगत है, बल्कि यह संविधान के मूल सिद्धांतों, पर्यावरणीय संतुलन और न्यायिक विवेक के विपरीत है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस आदेश के तहत मानसून के मौसम में बड़ी संख्या में सेब के पेड़ों को काटना न केवल पारिस्थितिक असंतुलन पैदा करेगा, बल्कि इससे भूस्खलन और मिट्टी के क्षरण का खतरा भी कई गुना बढ़ जाएगा। हिमाचल जैसे भूकंप संभावित और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील राज्य में सेब के बागान केवल अतिक्रमण नहीं हैं, बल्कि ये हजारों किसानों की आजीविका का प्रमुख स्रोत हैं। ये बागान न केवल मिट्टी को स्थिर बनाए रखने में सहायक हैं, बल्कि स्थानीय जैवविविधता और राज्य की अर्थव्यवस्था में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
इस फैसले से पहले शिमला जिले के कोटखाई क्षेत्र के चैथला गांव में हाईकोर्ट के 2 जुलाई 2025 के आदेश के तहत वन विभाग ने एक बड़ा अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया था। इस दौरान करीब 22 हेक्टेयर वन भूमि से लगभग 4,500 सेब के पेड़ काटे गए थे। यह कार्रवाई लगातार सात दिन तक चली थी जिसमें पुलिस और प्रशासन की संयुक्त टीमें शामिल थीं। यह पहला मौका था जब शिमला जैसे सेब उत्पादक क्षेत्र में इतने बड़े स्तर पर सेब के पेड़ों की कटाई हुई हो। वन विभाग का कहना था कि यह कार्रवाई अदालत के निर्देशों के पालन में की गई और वहां अब पुनः वन प्रजातियों के पौधे लगाए जाएंगे।
हालांकि इस कार्रवाई से हजारों किसान आहत हुए और उन्होंने इसे अपनी आजीविका पर सीधा हमला बताया। इसी पृष्ठभूमि में हिमाचल किसान सभा और राज्य के सेब उत्पादकों ने आगामी 29 जुलाई को शिमला सचिवालय के बाहर विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि सरकार तत्काल बेदखली की कार्रवाई, घरों की तालाबंदी और तोड़फोड़ पर पूर्ण विराम लगाए और इस मुद्दे को संवेदनशीलता से हल करे।
सुप्रीम कोर्ट का यह अंतरिम निर्णय न केवल प्रभावित किसानों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह देशभर में भूमि, आजीविका और पर्यावरणीय न्याय के बीच संतुलन कायम करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। यह आदेश आने वाले समय में हिमाचल प्रदेश में भूमि सुधार और अतिक्रमण से जुड़े विवादों में नीति निर्धारण को भी प्रभावित कर सकता है।
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