मार्च 2025 की एक सर्द रात, पटियाला के राजिंदरा अस्पताल के पास एक ढाबे के बाहर हुआ मामूली पार्किंग विवाद अचानक एक गहरे और गंभीर मानवाधिकार प्रश्न में तब्दील हो गया। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी कर्नल पुष्पेंद्र सिंह बाठ और उनके बेटे अंगद पर कथित तौर पर पंजाब पुलिस के चार इंस्पेक्टरों समेत 12 कर्मियों ने सामूहिक रूप से हमला किया। इस कांड ने न केवल स्थानीय पुलिस के कामकाज पर सवाल खड़े किए, बल्कि इसे लेकर राज्य और केंद्र की एजेंसियों के बीच निष्पक्षता और पारदर्शिता के मानकों को लेकर बहस भी छिड़ गई।
इस घटना के बाद, पंजाब पुलिस पर कार्रवाई में ढिलाई और टालमटोल के आरोप लगे। हालांकि मामला जब सेना मुख्यालय और रक्षा मंत्रालय तक पहुंचा, तब जाकर 9 दिन बाद एफआईआर दर्ज हुई और सभी 12 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया। लेकिन पीड़ित परिवार के लिए यह कदम काफी नहीं था। कर्नल बाठ की पत्नी जसविंदर कौर ने पंजाब पुलिस के इस रवैये और दोषियों की गिरफ्तारी न होने पर आक्रोश जताया और डीसी ऑफिस के बाहर धरना शुरू कर दिया। उन्होंने लगातार यह आरोप लगाया कि स्थानीय और चंडीगढ़ पुलिस, दोनों ने मिलकर इस मामले को दबाने की कोशिश की और आरोपी पुलिसकर्मियों को बचाने का प्रयास किया।
इसके बाद पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए चंडीगढ़ पुलिस को जांच का जिम्मा सौंपा और एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित की। एसआईटी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, घटनाक्रम को रीक्रिएट किया और ढाबे के मालिक सहित स्टाफ से बयान भी लिए। इस जांच टीम का नेतृत्व सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस मनजीत सिंह कर रहे थे और इसमें डीएसपी व इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी शामिल थे।
हालांकि, कर्नल बाठ की पत्नी का आरोप है कि चंडीगढ़ पुलिस की जांच भी निष्पक्ष नहीं रही। उनका कहना है कि पुलिस ने पीड़ित परिवार के बयान तक नहीं लिए और बार-बार आरोपी पुलिसकर्मियों को बचाने की कोशिश की गई। उन्होंने यह भी दावा किया कि चंडीगढ़ पुलिस ने अदालत में धारा 307 (हत्या के प्रयास) को हटाने की सिफारिश की, जो उनके अनुसार, गंभीर अपराध को कमजोर करने का सीधा प्रयास था। इस पर हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई और स्पष्ट रूप से कहा कि चंडीगढ़ पुलिस की कार्यप्रणाली से यह प्रतीत होता है कि वे निष्पक्ष जांच नहीं कर पाए।
न्यायिक प्रणाली में परिवार का विश्वास बना रहा और उनकी लगातार कानूनी लड़ाई को अंततः एक अहम मोड़ मिला, जब हाईकोर्ट ने मामले की जांच चंडीगढ़ पुलिस से हटाकर सीधे केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपने का निर्देश दिया। यह आदेश इस आधार पर दिया गया कि वर्तमान जांच एजेंसी अपनी भूमिका में निष्पक्ष नहीं रही और पीड़ित पक्ष की शिकायतों को पर्याप्त प्राथमिकता नहीं दी गई।
सीबीआई को जांच सौंपे जाने से इस पूरे मामले को नया आयाम मिला है। देश की सबसे प्रतिष्ठित जांच एजेंसी से अब यह उम्मीद की जा रही है कि वह बिना किसी दबाव, प्रभाव या पक्षपात के पूरे घटनाक्रम की जांच करेगी और सच्चाई को सामने लाएगी। साथ ही, यह आदेश उन सभी मामलों के लिए एक नजीर बनेगा जहाँ पुलिस खुद ही आरोपों में घिरी हो और राज्य की एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए जा रहे हों।
यह मामला न केवल कानून व्यवस्था की साख के लिए एक परीक्षा है, बल्कि न्यायिक प्रणाली में आमजन और सैनिक परिवारों के विश्वास को पुनर्स्थापित करने की कसौटी भी है। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी और उनके परिवार पर हमले जैसा मामला जब जांच में ढिलाई का शिकार होता है, तब यह संपूर्ण व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाता है।
कर्नल बाठ की पत्नी जसविंदर कौर ने कोर्ट के फैसले पर संतोष जताया और कहा कि यह फैसला उनके परिवार की महीनों की संघर्ष का परिणाम है। उन्होंने यह भी कहा कि वे न्यायपालिका पर भरोसा रखती हैं, लेकिन चंडीगढ़ पुलिस की कार्यशैली ने उन्हें गहरा आघात पहुंचाया। उन्होंने कहा कि अब उन्हें उम्मीद है कि सीबीआई बिना किसी दबाव के सच्चाई को उजागर करेगी और दोषियों को उनके अंजाम तक पहुंचाएगी।
यह घटना हमें याद दिलाती है कि सत्ता, वर्दी या व्यवस्था में बैठे लोगों के खिलाफ भी जब आरोप लगते हैं, तो उनका निष्पक्ष और साहसिक जांच आवश्यक है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि न्याय की नींव निष्पक्षता और पारदर्शिता पर टिकी होती है, और यदि कोई एजेंसी इस भरोसे को तोड़ती है तो न्यायपालिका उसे दुरुस्त करने में पीछे नहीं हटती।
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