मंडी (विशेष रिपोर्ट)— हिमाचल प्रदेश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर बढ़ती **नेतृत्व की खींचतान अब खुले मंचों और सड़कों पर दिखने लगी है। दो दिन पहले जब भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर मंडी पहुंचे, तो ITI चौक पर उनके स्वागत के दौरान समर्थकों ने अनुराग ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाओ के नारे जोर-शोर से लगाए। यह नारेबाजी सिर्फ स्वागत का हिस्सा नहीं थी, बल्कि आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर सत्ता संघर्ष की झलक भी दे रही थी।
इस शक्ति प्रदर्शन की गूंज ज्यादा देर तक दब नहीं पाई। सोमवार को नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने मंडी में अपने समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन कर जैसे इस ‘राजनीतिक जवाबी कार्रवाई’ का संकेत दे दिया। इस दौरान उनके समर्थन में नारे लगाए गए, जिनमें उपभोक्ता फोरम की सदस् भी शामिल रहीं। यह स्पष्ट संकेत है कि भाजपा के भीतर अब गुटबंदी खुलकर सामने आ चुकी है — और यह सब ऐसे समय में जब हिमाचल में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं।
मंडी, बिलासपुर और हमीरपुर: तीन ताकतवर ध्रुव
भाजपा के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती नेतृत्व की एकजुटता बनाए रखने की है।
जेपी नड्डा, जो वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, का मजबूत प्रभाव बिलासपुर क्षेत्र में है।
जयराम ठाकुर, पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान नेता प्रतिपक्ष, का राजनीतिक कद मंडी क्षेत्र में काफी मजबूत है।
वहीं, अनुराग ठाकुर, जो पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र और मोदी सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, का मजबूत जनाधार हमीरपुर में है।
इन तीनों नेताओं के अपने-अपने समर्थक समूह हैं, जो अब खुलकर मैदान में उतरते दिख रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा के भीतर का यह **‘संतुलन’ अब प्रतिस्पर्धा में बदलता नजर आ रहा है।
कांगड़ा बना निर्णायक केंद्र
हिमाचल की राजनीति में यह कहावत लंबे समय से चली आ रही है कि
जो कांगड़ा जीतेगा, वही हिमाचल पर शासन करेगा
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के पास वर्तमान में कांगड़ा क्षेत्र से कोई सशक्त और सर्वमान्य चेहरा नहीं है। यह शून्यता पार्टी के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि कांगड़ा विधानसभा सीटें सत्ता का रास्ता तय करने में निर्णायक भूमिका निभाती हैं।
अंदरूनी कलह से विपक्ष को फायदा
भाजपा के भीतर यह खुली गुटबाजी विपक्ष, खासकर कांग्रेस के लिए एक राजनीतिक अवसर साबित हो सकती है। कांग्रेस पहले ही भाजपा की आंतरिक असहमति को चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि भाजपा नेतृत्व ने समय रहते संगठनात्मक अनुशासन नहीं लागू किया, तो पार्टी की ‘डबल इंजन’ की ताकत कमजोर पड़ सकती है।
केंद्रीय नेतृत्व की अगली परीक्षा
अब सभी की निगाहें पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पर यह जिम्मेदारी है कि वे हिमाचल में इस गुटबाजी को थामें और पार्टी के भीतर एकजुटता का संदेश दें।
अगर यह विवाद लंबा खिंचा, तो इसका असर न केवल राज्य के विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा बल्कि भाजपा के संगठनात्मक ढांचे पर भी दीर्घकालिक रूप से दिखाई देगा।
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हिमाचल की सियासत फिलहाल ‘अनुराग बनाम जयराम’ के टकराव में फंसी नजर आ रही है। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या भाजपा फिर से एकजुट होकर जनता के बीच अपने विकास के एजेंडे पर लौट पाएगी, या फिर यह गुटबंदी पार्टी की छवि और रणनीति, दोनों को प्रभावित करेगी।






