हिमाचल की तबाही का असर हरियाणा-पंजाब तक, सब्जियां हुईं ‘सोने’ के भाव”

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उत्तर भारत में इस मौसम की तेज़ बरसात व हिमाचल में हुए भूस्खलन ने सिर्फ पहाड़ी नज़ारों को बदल नहीं दिया, बल्कि चूल्हे-रसोई तक की चुनौतियों को बढ़ा दिया है। विशेष रूप में — हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश व लैंडस्लाइड्स से सब्जी उत्पादन व आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है, जिसका सीधा असर पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ की मंडियों पर दिखने लगा है।


हिमाचल प्रदेश में लंबी और खराब वर्षा-प्रवाह व भूस्खलनों ने कई क्षेत्रों में खेतों व रास्तों को क्षतिग्रस्त किया, जिससे सब्जी का उत्पादन घटी और परिवहन मार्ग ब्लॉक हो गए। उदाहरण के लिए, लाहोल-स्पीति इलाके से निकलने वाली  सब्जियाँ अब न तो समय पर आ रही हैं और न ही पर्याप्त मात्रा में। इसलिए आपूर्ति टूट रही है, जिससे कीमतें ऊपर जा रही हैं।

पंजाब में यह असर विशेष रूप से दिखा है। लुधियाना से रिपोर्ट्स बताती हैं कि टमाटर, शिमला मिर्च व अन्य सब्जियों के दाम दोगुने-तीन-गुने तक हो गए हैं।  चंडीगढ़-पंजाब क्षेत्र में तो लौकी २५-३० ₹/किलो से बढ़कर १००-१२० ₹/किलो तक पहुँच गई, बैगन २० ₹/किलो से १०० ₹/किलो तक जा पहुंची।


उदाहरण के तौर पर हरियाणा के अंबाला जिले की बड़ी सब्जी मंडी में भी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। शिमला मिर्च जैसी सब्जी जो पहले १०-२० ₹/किलो थी, अब ८० ₹/किलो तक मिल रही है। अन्य सब्जियाँ ८०-१०० ₹/किलो तक पहुंच चुकी हैं। यह वृद्धि सिर्फ कीमत की नहीं, बल्कि आम जनता की रोजमर्रा-की खरीद की मजबूरी बन चुकी है।


आबोहवाओं की अनियमितता ने सब्जी-उत्पादन और आपूर्ति दोनों को झटका दिया है। एक RBI-अनुसार अध्ययन में ऐसा पाया गया है कि वर्षा में परिवर्तन से औसतन सब्जी-मूल्य वृद्धि लगभग 1.24 प्रतीशत अंक तक हो सकती है। इसके साथ ही – पहाड़ी क्षेत्र से परिवहन में लेट-लतीफी व लागत-उछाल भी कीमतों को ऊपर धकेल रहे हैं।



यह समस्या केवल कीमतों का नहीं, बल्कि सामाजिक-वित्तीय दबाव का मामला है। गृहिणियाँ कह रही हैं कि बजट टूट रहा है, “पहले ५०० ₹ में काम चल जाता था, अब ८००-९०० ₹ हो गया।” कम-आय वाले परिवारों में सब्जी-खरीद में कटौती हो रही है, सलाद-हरी पत्तियाँ और “साइड सब्जियाँ” बाजार से लगभग गायब हो रही हैं।


उत्पादन व परिवहन व्यवस्था सुधारना अब अनिवार्य हो गया है। जैसा कि अध्ययन सुझाव देता है — जलवायु-सहिष्णु खेती, बेहतर संग्रह व शीत-शृंखला, तथा आपूर्ति-मार्गों की मजबूती अपेक्षित है।  हिमाचल प्रदेश में यदि उत्पादन व रास्ते बेहतर हों, तो पंजाब-हरियाणा-चंडीगढ़ को राहत मिल सकती है।

हिमाचल की बारिश-तबाही ने न सिर्फ पहाड़ों को बल्कि शहर-मंडियों को भी प्रभावित किया है। सब्जियों की बढ़ती कीमतें बताती हैं कि हमारी हर-रसोई एक संवेदनशील आपूर्ति-जाल पर निर्भर है, जिसे मौसम ने झकझोरा है। इस पर नियंत्रण समय-की मांग है — नहीं तो “सब्जी-किलो” का सवाल केवल दाम का नहीं, बल्कि भोजन-विक्रय का बन जाएगा।

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