
आस्था और परंपरा का रोमांच: स्पैल वैली का भूंडा महायज्ञ
- Dharam/AasthaHindi NewsLAHUL SPITIMANDI
- January 3, 2025
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स्पैल वैली के दलगांव में 40 वर्षों बाद आयोजित हो रहा भूंडा महायज्ञ न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह देव संस्कृति और आस्था का जीवंत प्रतीक भी है। लाखों श्रद्धालु इस महायज्ञ का साक्षी बनने के लिए उमड़ रहे हैं, जहां परंपराओं का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है।
महायज्ञ का सबसे रोमांचक हिस्सा वह पल होता है जब “बेडा”—यानी देवता द्वारा चुना गया व्यक्ति—मुंजी घास की रस्सी पर फिसलते हुए एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी तक जाता है। इस बार 69 वर्षीय सूरत राम इस भूमिका को निभा रहे हैं। उनका साहस और आत्मविश्वास देखने लायक है। वह कहते हैं, “डर से बड़ा कुछ नहीं होता, सिवाय आस्था के।” सूरत राम के जोश और अनुभव ने इस महायज्ञ को और भी खास बना दिया है।
मान्यता के अनुसार, मुंजी घास माता सीता के केशों से बनी है, जो प्रभु श्रीराम के प्रयास से उनके हाथों में आ गए थे। इस मान्यता ने भूंडा महायज्ञ को और अधिक पवित्र बना दिया है। देवता बकरालू महाराज की कृपा से यह आयोजन आस्था के सागर में डुबकी लगाने जैसा है।
महायज्ञ के पहले दिन कई देवताओं का आगमन हुआ। देवता बौंद्रा महाराज, महेश्वर महाराज, और मोहरिश महाराज अपने अनुयायियों के साथ देवता बकरालू महाराज के मंदिर पहुंचे। इन देवताओं का मिलन श्रद्धालुओं के लिए आस्था और उल्लास का अनूठा क्षण बन गया।
स्पैल वैली के 9 गांव—दलगांव, ब्रेटली, खशकंडी, कुटाड़ा, बुठाड़ा, गांवना, खोडसू, करालश और भमनाला—इस महायज्ञ का हिस्सा बनकर इसे अपनी परंपराओं और संस्कृति से समृद्ध बना रहे हैं। यह आयोजन न केवल इन गांवों के लोगों की आस्था को दर्शाता है, बल्कि क्षेत्र की एकता और सामूहिकता का परिचायक भी है।
भूंडा महायज्ञ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि देव संस्कृति का उत्सव है। यह न केवल परंपराओं को सहेजने का कार्य करता है, बल्कि युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का माध्यम भी बनता है। आस्था, रोमांच और परंपरा का यह अनोखा संगम हर श्रद्धालु के लिए अविस्मरणीय अनुभव बन गया है।
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