एक साथ चुनाव भारत के लोकतंत्र के लिए हानिकारक क्यों?

एक साथ चुनाव भारत के लोकतंत्र के लिए हानिकारक क्यों?

डॉo सत्यवान सौरभ,

 

एक साथ चुनावों से देश की संघवाद को चुनौती मिलने की भी आशंका है। एक साथ चुनाव होने से लोकतंत्र के इन विशिष्ट मंचों और क्षेत्रों के धुंधला होने का खतरा है, साथ ही यह जोखिम भी है कि राज्य-स्तरीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों में समाहित हो जाएंगे। अगर लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाए गए तो ज्यादा संभावना है कि राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएँ या इसके विपरीत क्षेत्रीय मुद्दों के सामने राष्ट्रीय मुद्दे अपना अस्तित्व खो दें।

 

– डॉ सत्यवान सौरभ

 

 

एक साथ चुनाव का तात्पर्य है कि पूरे भारत में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे, जिसमें संभवतः एक ही समय के आसपास मतदान होगा। एक साथ चुनाव, या “एक राष्ट्र, एक चुनाव” का विचार पहली बार औपचारिक रूप से भारत के चुनाव आयोग द्वारा 1983 की रिपोर्ट में प्रस्तावित किया गया था। एक साथ चुनाव कराने के कुछ संभावित लाभों के साथ-साथ कुछ कमियां भी हैं, जो सवाल उठाती हैं: क्या एक साथ चुनाव कराना भारत के लोकतंत्र के लिए हानिकारक है?

 

एक देश एक चुनाव के विरोध में विश्लेषकों का मानना है कि संविधान ने हमें संसदीय मॉडल प्रदान किया है जिसके तहत लोकसभा और विधानसभाएँ पाँच वर्षों के लिये चुनी जाती हैं, लेकिन एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर हमारा संविधान मौन है। संविधान में कई ऐसे प्रावधान हैं जो इस विचार के बिल्कुल विपरीत दिखाई देते हैं। मसलन अनुच्छेद 2 के तहत संसद द्वारा किसी नये राज्य को भारतीय संघ में शामिल किया जा सकता है और अनुच्छेद 3 के तहत संसद कोई नया राज्य राज्य बना सकती है, जहाँ अलग से चुनाव कराने पड़ सकते हैं। इसी प्रकार अनुच्छेद 85(2)(ख) के अनुसार राष्ट्रपति लोकसभा को और अनुच्छेद 174(2)(ख) के अनुसार राज्यपाल विधानसभा को पाँच वर्ष से पहले भी भंग कर सकते हैं। अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल लगाकर लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। इसी तरह अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और ऐसी स्थिति में संबंधित राज्य के राजनीतिक समीकरण में अप्रत्याशित उलटफेर होने से वहाँ फिर से चुनाव की संभावना बढ़ जाती है। ये सारी परिस्थितियाँ एक देश एक चुनाव के नितांत विपरीत हैं।

 

एक साथ चुनाव कराने के लिए राज्य विधान सभाओं की शर्तों को लोकसभा की शर्तों के साथ समन्वित करने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, जन प्रतिनिधित्व कानून के साथ-साथ अन्य संसदीय प्रक्रियाओं में भी संशोधन की आवश्यकता होगी। एक साथ चुनाव को लेकर क्षेत्रीय दलों का प्रमुख डर यह है कि वे अपने स्थानीय मुद्दों को मजबूती से नहीं उठा पाएंगे, क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे केंद्र में आ जाएंगे। इसके अतिरिक्त, वे चुनावी खर्च और चुनावी रणनीति के मामले में भी वे राष्ट्रीय पार्टियों से मुकाबला नहीं कर पाएंगे। एक साथ चुनावों से देश की संघवाद को चुनौती मिलने की भी आशंका है। एक साथ चुनाव होने से लोकतंत्र के इन विशिष्ट मंचों और क्षेत्रों के धुंधला होने का खतरा है, साथ ही यह जोखिम भी है कि राज्य-स्तरीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों में समाहित हो जाएंगे।

 

धुंधली विशेषता मतदाताओं को खराब प्रदर्शन के लिए सरकारों को जिम्मेदार ठहराने या उन्हें अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत करने से रोकती है। सरकार के विभिन्न स्तरों के लिए अलग-अलग चुनाव होने से मतदाताओं को यह स्पष्ट हो जाता है कि किस स्तर की सरकार किस चीज़ के लिए ज़िम्मेदार है और वह संबंधित सरकार के प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करती है। इसका नतीजा यह है कि सरकार को गिरने से बचाने की दिशा में एक मजबूत प्रयास होगा, भले ही वह सामान्य परिस्थितियों में सदन का विश्वास खो चुकी हो। एक साथ चुनाव होने पर खरीद-फरोख्त की विस्फोटक स्थिति होने की संभावना है।

 

एक देश एक चुनाव देश के संघीय ढाँचे के विपरीत होगा और संसदीय लोकतंत्र के लिये घातक कदम होगा। लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करवाने पर कुछ विधानसभाओं के मर्जी के खिलाफ उनके कार्यकाल को बढ़ाया या घटाया जायेगा जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। भारत का संघीय ढाँचा संसदीय शासन प्रणाली से प्रेरित है और संसदीय शासन प्रणाली में चुनावों की बारंबारता एक अकाट्य सच्चाई है। अगर लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाए गए तो ज्यादा संभावना है कि राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएँ या इसके विपरीत क्षेत्रीय मुद्दों के सामने राष्ट्रीय मुद्दे अपना अस्तित्व खो दें। दरअसल लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव का स्वरूप और मुद्दे बिल्कुल अलग होते हैं। लोकसभा के चुनाव जहाँ राष्ट्रीय सरकार के गठन के लिये होते हैं, वहीं विधानसभा के चुनाव राज्य सरकार का गठन करने के लिये होते हैं। इसलिए लोकसभा में जहाँ राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों को प्रमुखता दी जाती है, तो वहीं विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय महत्त्व के मुद्दे आगे रहते हैं।

 

लोकतंत्र को जनता का शासन कहा जाता है। देश में संसदीय प्रणाली होने के नाते अलग-अलग समय पर चुनाव होते रहते हैं और जनप्रतिनिधियों को जनता के प्रति लगातार जवाबदेह बने रहना पड़ता है। इसके अलावा कोई भी पार्टी या नेता एक चुनाव जीतने के बाद निरंकुश होकर काम नहीं कर सकता क्योंकि उसे छोटे-छोटे अंतरालों पर किसी न किसी चुनाव का सामना करना पड़ता है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर दोनों चुनाव एक साथ कराये जाते हैं, तो ऐसा होने की आशंका बढ़ जाएगी। भारत जनसंख्या के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। लिहाजा बड़ी आबादी और आधारभूत संरचना के अभाव में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराना तार्किक प्रतीत नहीं होता।

एक साथ चुनाव के पक्ष में कई बाध्यकारी कारण हैं। हालांकि, विभिन्न राजनीतिक दलों, विशेष रूप से क्षेत्रीय दलों के बीच एक साथ चुनाव कराने पर राजनीतिक सहमति हासिल करना, अपने आप में एक कानूनी और राजनीतिक चुनौती है। इसलिए, देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों, भारतीय चुनाव आयोग, नौकरशाहों, शिक्षाविदों और विशेषज्ञों सहित हितधारकों के विचार के सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत हर समय चुनावी चक्रव्यूह में घिरा हुआ नजर आता है।

 

Related post

Tensions Rise in Ferozepur: Clashes Erupt During Panchayat Election Nominations

Tensions Rise in Ferozepur: Clashes Erupt During Panchayat Election…

Tensions Rise in Ferozepur: Clashes Erupt During Panchayat Election Nominations In a troubling development during the nomination process for the upcoming…
Punjab Police Disrupts International Drug Smuggling Operation, Arrests Two Operatives with 1.5kg Heroin

Punjab Police Disrupts International Drug Smuggling Operation, Arrests Two…

Punjab Police Disrupts International Drug Smuggling Operation, Arrests Two Operatives with 1.5kg Heroin In a significant breakthrough in the ongoing fight…
शानन परियोजना क्षेत्र में सड़कों की बदहाली को लेकर किया प्रदर्शन, पंजाब बिजली बोर्ड प्रबंधन को सौंपा ज्ञापन, दस दिन का दिया अल्टीमेटम

शानन परियोजना क्षेत्र में सड़कों की बदहाली को लेकर…

शानन परियोजना क्षेत्र में सड़कों की बदहाली को लेकर किया प्रदर्शन, पंजाब बिजली बोर्ड प्रबंधन को सौंपा ज्ञापन, दस दिन का…

Leave a Reply

Your email address will not be published.