गुरु नानक जयंती 2024: गुरु नानक देव जी के दिव्य उपदेशों और जीवन यात्रा का स्मरण
- Dharam/AasthaHindi News
- November 13, 2024
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15 नवंबर 2024 को मनाई जाने वाली गुरु नानक जयंती सिख धर्म के संस्थापक और महान संत, गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस का पावन पर्व है। पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर को सुबह 6 बजकर 19 मिनट से शुरू होकर 16 नवंबर को देर रात 2 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी। कार्तिक पूर्णिमा का यह पवित्र दिन सिख धर्मावलंबियों और अन्य श्रद्धालुओं के लिए गुरु नानक जयंती के रूप में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जिसमें न केवल गुरु नानक जी की शिक्षाओं का स्मरण किया जाता है, बल्कि उनके जीवन के अमूल्य उपदेशों को भी आत्मसात किया जाता है।
सिख धर्म के संस्थापक, श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ईस्वी में पाकिस्तान के ननकाना साहिब (तत्कालीन राय भोंए की तलवंडी) में माता तृप्ता जी और मेहता कालू जी के घर हुआ था। बचपन से ही प्रभु की भक्ति में लीन रहने वाले गुरु नानक जी ने इंसानियत, करुणा, सेवा, और प्रेम को अपने जीवन के केंद्र में रखा। उनके आरंभिक जीवन में एक खास घटना का उल्लेख किया जाता है जब उनके पिता ने उन्हें 20 रुपये देकर व्यापार का ज्ञान देने का प्रयास किया। गुरु नानक देव जी ने उस राशि से भूखे संतों को भोजन कराया और इसे “सच्चा सौदा” कहा, जो यह दर्शाता है कि उनके लिए सच्चाई और करुणा किसी भी सांसारिक लाभ से कहीं अधिक मूल्यवान थे।
बचपन से ही गुरु नानक देव जी को वैदिक, गणित, फारसी, और इस्लामी साहित्य का अध्ययन करने का अवसर मिला, जिसमें उनके माता-पिता की इच्छाएं शामिल थीं। उनकी बड़ी बहन बीबी नानकी जी ने उन्हें सुल्तानपुर लोधी में अपने पास बुला लिया, जहाँ उन्हें मोदीखाने में नौकरी भी मिली। परंतु, उनका मन प्रभु भक्ति में ही रमा रहता और वे जो भी ज़रूरतमंद उनके पास आता, उसकी सहायता करने से कभी पीछे नहीं हटते थे।
गुरु नानक जी का जीवन संदेश दुनिया को सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने का था। उन्होंने चार प्रमुख यात्राओं (उदासियों) के माध्यम से विभिन्न दिशाओं में भ्रमण किया और लोगों को इंसानियत के सच्चे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। वे संत-महापुरुषों के साथ संवाद करते और उनसे आग्रह करते कि वे भी अपने सत्संग में लोगों को सच्चे ईश्वर से जुड़ने की प्रेरणा दें। गुरु नानक देव जी ने योगी, साधु, और सन्यासियों से भेंट कर उन्हें गृहस्थ जीवन के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा दी, जिससे समाज में सेवा और करुणा के साथ जिया जा सके। उनका जीवन इस बात का प्रतीक था कि ईश्वर को पाने के लिए गृहस्थ जीवन का मार्ग भी उतना ही पवित्र है।
जब गुरु नानक देव जी अपनी यात्राएं पूरी कर लौटे तो उन्होंने करतारपुर में एक नई जीवन शैली अपनाई। उदासी के भेष त्याग कर उन्होंने सामान्य गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया और यहां पर वे खेती-बाड़ी के कार्य में लग गए। उनका सत्संग और कीर्तन यहां प्रतिदिन होता, जहां लोग दूर-दूर से उनके दर्शन और उपदेश सुनने आते। इसी समय भाई लहणा जी, जो बाद में गुरु अंगद देव जी बने, उनके पास आए और गुरु जी ने उन्हें अपनी गुरुगद्दी सौंप दी, जिससे गुरु परंपरा को एक नई दिशा मिली।
1539 में, गुरु नानक देव जी ज्योति ज्योत में समा गए, परंतु उनके उपदेश और संदेश आज भी सिख धर्म के अनुयायियों और मानवता को राह दिखाने का कार्य कर रहे हैं। उनका सबसे प्रमुख उपदेश “इक ओंकार” अर्थात “ईश्वर एक है” था, जो सिख पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब का मूल मंत्र है। उन्होंने बताया कि ईश्वर को पाने के लिए हमें खुद को उसकी सेवा में समर्पित करना होगा। उन्होंने कहा कि इस संसार में झूठ की एक दीवार है जो मनुष्य और परमात्मा के बीच बनी हुई है, और यह दीवार केवल सेवा, सत्य और प्रभु के प्रति समर्पण से टूट सकती है।
आज भी, गुरु नानक जयंती के अवसर पर देश-विदेश में लाखों श्रद्धालु गुरुद्वारों में एकत्र होते हैं। इस दिन विशेष रूप से कीर्तन, अखंड पाठ, और लंगर सेवाओं का आयोजन किया जाता है। गुरु नानक जी के जीवन से प्रेरणा लेकर उनके अनुयायी समाज में सेवा और करुणा का प्रसार करते हैं, ताकि एक सच्चे और मानवीय समाज का निर्माण हो सके। गुरु नानक देव जी के संदेशों को न केवल सिख समुदाय, बल्कि अन्य धर्मों और समाजों में भी मान्यता प्राप्त है, जो उनकी शिक्षाओं की सार्वभौमिकता को प्रमाणित करता है।
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