हिमाचल भवन नीलामी विवाद: बीजेपी की बांटी रिवड़ी कांग्रेस की गले की फांस बनी

हिमाचल भवन नीलामी विवाद: बीजेपी की बांटी रिवड़ी कांग्रेस की गले की फांस बनी

दिल्ली स्थित हिमाचल भवन की नीलामी के आदेशों ने हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक तनाव बढ़ा दिया है। इस मामले का मुख्य कारण 2009 में तत्कालीन धूमल सरकार द्वारा एक ऊर्जा परियोजना का निजी कंपनी को आवंटन और इसके बाद उत्पन्न कानूनी विवाद है।लाहौल-स्पीति में 320 मेगावाट की सेली हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को 2009 में निजी कंपनी को सौंपा गया। कंपनी ने 64 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि राज्य सरकार को दी थी। लेकिन परियोजना स्थल पर बुनियादी ढांचे की कमी और स्थानीय विरोध के कारण यह प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सका। 2018 में कंपनी ने परियोजना छोड़ दी और अपनी जमा राशि की वापसी के लिए अदालत का रुख किया। हिमाचल हाईकोर्ट ने जनवरी 2023 में सरकार को 7% ब्याज सहित कंपनी को राशि लौटाने का आदेश दिया, लेकिन सरकार ने इसका पालन नहीं किया। नवंबर 2024 में अदालत ने आदेश दिया कि यदि राज्य सरकार राशि लौटाने में विफल रहती है, तो कंपनी दिल्ली स्थित हिमाचल भवन की संपत्ति को नीलाम कर सकती है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सुक्खू ने इस फैसले पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि उनकी सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की संभावना तलाश रही है।
मामले का इतिहास

  • प्रोजेक्ट का आवंटन: साल 2009 में भाजपा सरकार के कार्यकाल में सेली हाइड्रो प्रोजेक्ट कंपनी को 320 मेगावाट का यह प्रोजेक्ट आवंटित किया गया था।
  • अग्रिम राशि: कंपनी ने सरकार को अपफ्रंट मनी के तौर पर 64 करोड़ रुपये दिए थे।
  • प्रोजेक्ट का रद्द होना: स्थानीय विरोध और बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण कंपनी ने 9 साल बाद प्रोजेक्ट को सरेंडर कर दिया।
  • पैसे वापस मांगने की मांग: कंपनी ने सरकार से 64 करोड़ रुपये वापस मांगे।
  • कानूनी लड़ाई: सरकार ने पैसे वापस करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद कंपनी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
  • हाईकोर्ट का फैसला: हाईकोर्ट ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकार को 64 करोड़ रुपये 7% ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया।
  • हिमाचल भवन की नीलामी: सरकार के द्वारा पैसा नहीं लौटाने पर हाईकोर्ट ने हिमाचल भवन को नीलाम करने का आदेश दिया।

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप

  • भाजपा का आरोप: भाजपा का आरोप है कि सुक्खू सरकार ने इस मामले में कोई गंभीरता नहीं दिखाई और हिमाचल भवन को नीलाम होने दिया।
  • सरकार का पक्ष: सरकार का कहना है कि यह मामला भाजपा के कार्यकाल में शुरू हुआ था और उन्होंने ही कंपनी को प्रोजेक्ट दिया था। सरकार का यह भी कहना है कि उन्होंने कोर्ट में लड़ाई लड़ी लेकिन फैसला कंपनी के पक्ष में आया।

तथ्य और आंकड़े

  • 2009 में भाजपा सरकार ने यह प्रोजेक्ट आवंटित किया था।
  • कंपनी ने सरकार को 64 करोड़ रुपये अपफ्रंट मनी के तौर पर दिए थे।
  • 13 साल में यह राशि ब्याज सहित 150 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है।
  • हाईकोर्ट ने सरकार को 64 करोड़ रुपये 7% ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया।

राजनैतिक तकरार
भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है। मुख्यमंत्री सुक्खू का कहना है कि यह समस्या पिछली भाजपा सरकार की गलतियों का नतीजा है। उन्होंने भाजपा पर 5,000 करोड़ रुपये की “रेवड़ियां बांटने” और राज्य की वित्तीय स्थिति खराब करने का आरोप लगाया। वहीं, भाजपा का तर्क है कि मौजूदा सरकार ने समय पर निर्णय नहीं लिया, जिससे राज्य की प्रतिष्ठा को नुकसान हो रहा है।

आगे का रास्ता
राज्य सरकार ने मामले का समाधान निकालने और हिमाचल भवन की नीलामी रोकने के लिए सभी कानूनी विकल्पों को अपनाने की बात कही है। सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की योजना पर काम हो रहा है, ताकि राज्य की संपत्ति को बचाया जा सके और कंपनी को भुगतान की प्रक्रिया को उचित तरीके से निपटाया जा सके।

 

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