भारत के स्थायित्व की कहानी, संस्थानों और कार्यों से जुड़ी है    

भारत के स्थायित्व की कहानी, संस्थानों और कार्यों से जुड़ी है   

अरुणाभ घोष

 

सतत विकास के लिए नीतियों की जरूरत होती है, लेकिन इसके लिए लोगों की भी आवश्यकता होती है। जब तक हम ऊर्जा स्रोतों में बदलाव और सतत विकास को लोगों के करीब नहीं लायेंगे, तब तक हम पर्यावरण-अनुकूल और जनहितैषी प्रभाव तथा कार्यक्रमों के सतत संचालन से जुड़ी सामुदायिक कार्रवाई के लिए आवश्यक कठोर निर्णयों के प्रति दीर्घकालिक सामाजिक समर्थन प्राप्त नहीं कर सकते। यही कारण है कि, जब भारत के सतत विकास से जुड़ी पहलों की बात आती है, तो शब्दों से अधिक कार्रवाई में ही स्पष्टता दिखती है।

सतत विकास केवल एक पर्यावरणीय चिंता नहीं है; यह वह दृष्टिकोण है, जिसके माध्यम से आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन भी हमारे सामने आता है। छोटे किसानों पर विचार करें। भारत फलों और सब्जियों के क्षेत्र में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन इस उत्पादन का एक अनुमान के मुताबिक 5-16 प्रतिशत सालाना बर्बाद हो जाता है। हालांकि, नवीकरणीय ऊर्जा से परिचालित आजीविका उत्पादों के साथ, बदलाव के उदाहरण जमीन पर स्पष्ट होने लगे हैं। आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव मुसलरेड्डीगरीपल्ली में, महिलाओं के समूह बैंगन, टमाटर, करेला और केले को बर्बाद होने से बचाने के लिए, सौर ऊर्जा संचालित ड्रायर में सुखाकर हर महीने लगभग 3.5 लाख रुपये अर्जित कर रहे हैं। जब सबसे कमजोर और वंचित समुदाय अपने जीवन और आजीविका, नए बाजार तथा व्यवसायों से संबंधित अवसरों को बेहतर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर स्थायी समाधानों को प्रदर्शित करने में सक्षम होते हैं, तो इसे राष्ट्रीय नीति रूपरेखा में शामिल किया जाता है। भारत अब आजीविका के लिए नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी नीति बनाने वाला पहला देश है।

इस तरह के कार्यों के माध्यम से, इस तरह के कार्यक्रमों के माध्यम से,सतत विकास के लिए भारतीयो की दृष्टि में बदलाव हुए हैं। इसके तीन घटक हैं, जो वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों के लिए एक हरित और समावेशी अर्थव्यवस्था की रूपरेखा के रूप में कार्य कर सकते हैं।

पहला, विकास को नागरिक केंद्रित बनाना। चाहे वह सौभाग्य योजना हो, जिसने लगभग 100 प्रतिशत घरेलू विद्युतीकरण सुनिश्चित किया है, या उज्जवला योजना हो, जिसके तहत स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए 9.5 करोड़ एलपीजी कनेक्शन प्रदान किए गए हैं, या स्मार्ट मीटर की शुरुआत हो, जो वास्तव में लोगों के हाथों में ही बिजली-आपूर्ति के संचालन की सुविधा देता है। भारत ऊर्जा-स्रोतों में बदलाव को एक घरेलू कार्य बना रहा है। उजाला योजना, जिसका उद्देश्य एलईडी प्रकाश व्यवस्था के माध्यम से ऊर्जा संरक्षण करना है, सालाना लगभग 3.9 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को बचाने का प्रबंधन कर रही है। इसके साथ, जल जीवन मिशन ने 8 करोड़ ग्रामीण परिवारों को नल से सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति की सुविधा दी है। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत प्रगति हो रही है, जिसके अंतर्गत 2026 तक चुनिंदा शहरों में अति सूक्ष्म कण वायु प्रदूषण को 40 प्रतिशत तक कम करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके अलावा, एकल-उपयोग प्लास्टिक पर अंकुश लगाने के लिए स्वच्छ भारत मिशन आदि ऐसे उदाहरण हैं, जो दिखाते हैं कि कैसे सतत विकास से जुड़े बड़े पैमाने के कार्यक्रम भी लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं।

जब हम इस तरह के नागरिक-केंद्रित पहलों का विस्तार करते हैं, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि घरों से वास्तविक समय पर और उच्च गुणवत्ता युक्त डेटा प्रवाह को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है एवं तकनीकें और संबंधित योजनायें जमीन पर काम कर रहीं हैं। ऐसी योजनाओं के कार्यान्वयन के संबंध में, शासन के सभी स्तरों के अधिकारियों को लोगों से समय-समय पर प्रतिक्रिया लेने की आवश्यकता है।

दूसरा, अर्थव्यवस्था-केंद्रित कार्यक्रमों के माध्यम से सतत विकास को बड़े पैमाने पर गति देना। 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन तक पहुँचने के लिए, भारत की ऊर्जा प्रणाली और आर्थिक संरचना दोनों को बदलने की आवश्यकता है। यह पहल, यहां कई मोर्चों पर आगे बढ़ रही है। देश में अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी नवीकरणीय और सौर ऊर्जा स्थापित क्षमता है। सीईईडब्ल्यू, एनआरडीसी और एससीजीजे के विश्लेषण के अनुसार, भारत का नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र 2030 तक 10 लाख लोगों को रोजगार देगा। भविष्य के इस कार्यबल को प्रशिक्षित करने के लिए, स्किल काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब्स कर्मचारियों को हरित व्यवसायों और सेवाओं के लिए प्रशिक्षण दे रही है। ग्रामीण भारत भी इस बदलाव से अछूता नहीं है। वितरित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादों के पास 4 लाख करोड़ रुपये का बाजार अवसर है और ये जमीनी स्तर पर महिलाओं को सीधे सशक्त बना रहे हैं। इसी तरह, पीएम-कुसुम योजना, जिसके तहत अक्टूबर 2022 तक 1.5 लाख सिंचाई पंपों को सौर ऊर्जा परिचालित बनाया गया है, का उद्देश्य किसानों के सिंचाई बिलों को कम करते हुए उनकी आय में वृद्धि करना है। जैसे-जैसे दुनिया जीवाश्म ईंधन से दूर जा रही है, हम भविष्य के ईंधन, विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में भी बड़े कदम उठा रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के साथ, भारत विकास और प्रतिस्पर्धात्मकता से समझौता किए बिना, उर्वरक और इस्पात जैसे भारी उद्योगों को कार्बन-उत्सर्जन मुक्त बनाने के लिए हरित हाइड्रोजन का उपयोग कर सकता है।

ये वास्तव में भारत की शहरी और कृषि अर्थव्यवस्था के लिए बड़े कदम हैं। हालांकि, उनकी वास्तविक क्षमता के उपयोग के लिए इन कदमों की बड़े पैमाने पर विस्तार करने की आवश्यकता है, जिनमें शामिल हैं – विनिर्माण के क्षेत्र में उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (विशेष रूप से केवल स्वच्छ तकनीकी उत्पादों की जोड़ने के बजाय उच्च मूल्यवर्धन पर ध्यान केंद्रित करना), पूंजी सहायता में वृद्धि, आपूर्ति श्रृंखलाओं का विविधीकरण और खरीदारों के लिए प्रोत्साहन (फेम जैसी योजना, जो इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है) आदि।

तीसरा, भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सतत विकास से जुड़े पहलों को मजबूत कर रहा है। 2015 में भारत और फ्रांस द्वारा शुरू किए गए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) को सौर ऊर्जा की कीमतों को कम करने, सकल मांग को कम करने और 115 हस्ताक्षरकर्ता देशों के बीच सहयोगी अवसर पैदा करने के लिए डिजाइन किया गया है। इसी तरह, 2019 में भारत द्वारा लॉन्च किया गया आपदा-रोधी अवसंरचना गठबंधन (सीडीआरआई) जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों का सामना कर रहे क्षेत्रों में सहनशील अवसंरचना के निर्माण को बढ़ावा दे रहा है। अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के तहत, भारत की योजना 2030 तक वन आच्छादित क्षेत्र के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बन सिंक बनाने की है। आर्द्रभूमि के प्रबंधन में सुधार (जलवायु जोखिमों को कम करने में उनकी भूमिका सहित) और जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त कदम उठाए जा रहे हैं। मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में पार्टियों के सम्मेलन की मेजबानी करते हुए भारत ने 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने की भी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

अंत में, मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) के माध्यम से, भारत ने सतत विकास के लिए सतत खपत को विचार-विमर्श के केंद्र में रखा है। इसने न केवल अपने नागरिकों, बल्कि अन्य देशों के लोगों के लिए भी के लिए एक चुनौती पेश की है, जो एक चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए व्यवहार को बढ़ावा देने, बाजारों को सक्षम करने एवं आकांक्षाओं को फिर से परिभाषित करते हुए; अर्थव्यवस्था को विकसित करने और जीवन के अवसरों और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने से संबंधित है।

भारत ने घोषणा की है कि “हरित विकास”; 2047 तक एक विकसित देश बनने की उसकी यात्रा के सात स्तंभों में से एक होगा। पहले प्रदूषण फैलाने और बाद में सफाई करने का आसान रास्ता चुनने के प्रलोभन के बावजूद; कैसे रोजगार, विकास और स्थायित्व एक साथ चल सकते हैं, को प्रदर्शित करने के लिए, देश कठिन विकल्पों का चयन कर रहा है। लेकिन जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता के नुकसान और प्रदूषण – पृथ्वी के इस तिहरे संकट से अकेले मुकाबला नहीं किया जा सकता है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग, नियमों का पालन, प्रतिबद्धताओं की पूर्ति, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों का सह-विकास और कम लागत पर अधिक पूंजी तक पहुंच की सुविधा की आवश्यकता है। अंतत: इस सतत विकास की गाथा का जादू, हमेशा लोगों और समुदायों को जिम्मेदारी व संचालन वापस देने में निहित रहेगा।

 

डॉ अरुणाभ घोष ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (http://ceew.in) के सीईओ हैं।

 

 

 

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