महात्मा गांधी और शिमला का रिश्ता , इतिहास के पन्नों से अनकही दास्तान

महात्मा गांधी और शिमला का रिश्ता , इतिहास के पन्नों से अनकही दास्तान

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर आज पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। ब्रिटिशकालीन भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला से बापू का गहरा नाता रहा है; वे यहां दस बार आए थे। शिमला में स्थित चैडविक हाउस, जहां बापू अपनी अंतिम शिमला यात्रा के दौरान ठहरे थे, उनकी स्मृतियों को संजोए हुए है। यह भवन अब एक संग्रहालय के रूप में संरक्षित है, जहां महात्मा गांधी के शिमला प्रवास से जुड़ी अनेक यादें जीवंत हैं।

महात्मा गांधी 2 मई 1946 से 14 मई 1946 तक चैडविक हाउस में रहे। इस दौरान उन्होंने प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया और विभिन्न विषयों पर प्रवचन दिए। चैडविक हाउस के बारे में कहा जाता है कि यदि बापू के चरण यहां न पड़े होते, तो यह इमारत मिट्टी में मिल जाती। वर्ष 2018 में इस भवन का जीर्णोद्धार किया गया और इसे एक संग्रहालय का रूप दिया गया, जहां भारत में ऑडिट और एकाउंट्स के इतिहास का भी संग्रह है। सैलानी और इतिहास प्रेमी यहां आकर बापू के शिमला कनेक्शन के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

‘गांधी इन शिमला’ पुस्तक के लेखक विनोद भारद्वाज, जो चार दशकों से लेखन और शोध कार्यों से जुड़े हैं, बताते हैं कि महात्मा गांधी की अंतिम शिमला यात्रा 1946 में हुई थी। इस दौरान उनके साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल, अब्दुल गफ्फार खान, आचार्य कृपलानी, सरदार पटेल की बेटी मनुबेन आदि थे। जवाहरलाल नेहरू एक अन्य इमारत में ठहरे थे। गांधीजी कैबिनेट मिशन की बैठक में हिस्सा लेने के लिए आए थे, जो 5 मई 1946 को शिमला में शुरू हुई थी। अगले दिन गांधीजी ने वायसराय लॉर्ड वेवल से भेंट की थी। फिर 8 मई को बापू ने विश्वकवि गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को श्रद्धासुमन अर्पित किए थे।

चैडविक हाउस में गांधीजी के प्रवास के दौरान, उन्होंने प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया और विभिन्न विषयों पर प्रवचन दिए। प्रवास के पहले ही दिन, 2 मई 1946 को, बापू ने भविष्य की चिंता न करने और ईश्वर की इच्छा को सर्वोपरि मानने की बात कही। इस दौरान उन्होंने शांति व्यवस्था, बीमारी के भय को दूर करने से जुड़े प्रवचन भी दिए। 8 मई 1946 को, विश्वकवि रविंद्रनाथ टैगोर को श्रद्धांजलि देते हुए, गांधीजी ने उन्हें ऋषि कहा। उन्होंने शिमला में स्वराज पर भी बात की और कहा कि स्वराज हाथ से काते सूत की डोर से बंधा है।

शिमला के रिज मैदान पर महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित है, जिसके पीछे सफेद संगमरमर पर उनकी शिमला यात्राओं का वर्णन है। पहले यह विवरण अधूरा था, लेकिन विनोद भारद्वाज और पूर्व आईएएस श्रीनिवास जोशी के प्रयासों से इसे सुधारा गया। विनोद भारद्वाज कहते हैं कि नई पीढ़ी को शिमला के समृद्ध इतिहास और विशेषकर महात्मा गांधी के शिमला कनेक्शन के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। चैडविक हाउस सहित महात्मा गांधी से जुड़े हर स्थान के बारे में नई पीढ़ी को जानकारी देने के लिए प्रशासन को प्रयास करना चाहिए और बापू की स्मृतियों के प्रसार पर भी ध्यान देना चाहिए।

महात्मा गांधी की शिमला यात्राओं का इतिहास समृद्ध और प्रेरणादायक है, जो आज भी हमें उनके आदर्शों और सिद्धांतों की याद दिलाता है।
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