Prime Minister Narendra Modi: Living the ( महात्मा गांधी के आदर्शों को आत्मसात करने वाले व्यक्ति )ideals of Mahatma Gandhi

Prime Minister Narendra Modi: Living the ( महात्मा गांधी के आदर्शों को आत्मसात करने वाले व्यक्ति )ideals of Mahatma Gandhi

Prime Minister Narendra Modi: Living the ideals of Mahatma Gandhi

Sumitra Gandhi Kulkarni

In April 2024, Iwent and casted my vote and was therefore relieved when in June 2024, Shri Narendra Modi became Prime Minister of Bharat for the third time. Mahatma Gandhi or Bapuji as I call him was my grandfather. I lived with him till I was 19. This year, I turn 95 and I feel an urgency to compare Prime Minister Modi with Gandhiji and pen down my thoughts. Generations to come may want to know the views of a family member of Gandhiji who as an adult hadthe privilege of knowing both these human beings.

In my long years I have known many leaders. However, my association with Narendra Bhai stands out as extraordinary.It began during the challenging period of the 1975 Emergency. Though the exact moment can’t be recalled, Narendra Bhai was then a young, dynamic pracharak of the RSS.


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी: महात्मा गांधी के आदर्शों को आत्मसात करने वाले व्यक्ति

सुमित्रा गांधी कुलकर्णी

मैंने अप्रैल 2024 में मतदान केंद्र परजाकर अपना वोट डाला और जब जून 2024 मेंश्री नरेन्द्र मोदी तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने तो मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। महात्मा गांधी या बापूजी जैसा कि मैं उन्हें बुलाती हूं, वह मेरे दादा थे। मैं उनके साथ 19 वर्ष की आयु तक रही, अब मैं 95 वर्ष की हो गई हूं और मुझे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की तुलना गांधीजी से करने और अपने विचारों को कलमबद्ध करने की आवश्यकता महसूस हो रही है। आने वाली पीढ़ियां गांधीजी के परिवारके उस सदस्य के विचार जानना चाहेंगी, जिन्हें वयस्क होने पर इन दोनों व्यक्तियों को जानने का करीबी से सौभाग्य प्राप्त हुआ।

मैंने अपने लंबे जीवनकाल में बहुत सारे नेताओं को जाना है,लेकिन नरेन्द्र भाई के साथ मेरा जुड़ाव असाधारण है।इसकी शुरुआत वर्ष 1975 के आपातकाल के चुनौतीपूर्ण दौर में हुई थी। हालांकि मुझे वास्तविक रूप से वह क्षण याद नहीं है, लेकिननरेन्द्र भाई उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक युवाऔर ऊर्जस्वी प्रचारक थे।

1970 के दशक में अलगाववाद देश के ताने-बाने को खा रहा था। गुजरात से राज्यसभा सदस्य के रूप मेंपाकिस्तान से भारी घुसपैठ के कारण सीमावर्ती जिलों में हो रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तन से मैं बहुत चिंतित थी। असम में यह घुसपैठ बहुत ज़्यादा थी। उस समय मेरी पार्टीकांग्रेस के किसी भी नेता ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है कि किस प्रकार नरेन्द्र भाई उस समय कम उम्र में भी ऐसे मामलों कोगंभीरता से लेते थे। वह राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति स्पष्ट रूप से प्रतिबद्ध थे और तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य ने उनका ध्यान इस मुद्दे से विचलित नहीं किया।

वह उन दिनों भी ग्रामीण महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों-व्यक्तिगत स्वच्छता;स्वच्छ पेयजल; प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल आदि से पूरी तरह परिचित थे। उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बादअनुकरणीय साहस का परिचय दिया और स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में राष्ट्रीय स्वच्छता की आवश्यकता को स्पष्ट किया। उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान की नींव रखी, जिससे स्वच्छता में काफी सुधार हुआ और इसके साथ ही पूरे देश महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा भी बढ़ोतरी हुई। मेरे दादाजी ‘जन आंदोलन’ में विश्वास करते थे,क्योंकिलोगों के इस प्रकार केआंदोलन स्थायी सामाजिक परिवर्तन का आधार है। नरेन्द्र भाई का ‘सबकाशब्द पर अटूट विश्वास है, जैसे कि सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और विकसित भारत। ये उनके लिए महज चर्चा करने वाले शब्द नहीं हैं, बल्कि उनके प्रेरक तत्व हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान उनका मानवता सर्वप्रथमयुक्त नेतृत्व देश की सीमाओं तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने संपूर्ण विश्व को अपने दायरे में समाहित कर लिया। एक बार फिरउन्होंने धारा के विपरीत जाकर हमें अनुच्छेद 370 की घुटन भरी स्थिति से मुक्त किया। वह व्यवस्थित रूप से उस एजेंडे को पूरा कर रहे हैं, जिसे आजादी हासिल होने के बाद पूरा किया जाना चाहिए था। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) इसका एक उदाहरण है।

सनातन धर्म की इस महान धरा पर अनेक गुरुओं-शिरडी के साईं नाथ, श्री रमण महर्षि आदि की आध्यात्मिक शक्ति से राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल हुई और गांधीजी इसका नेतृत्व करने के साधन बने। यह कोई संयोग नहीं है कि दशकों बादनरेन्द्र भाई हमें औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने कामाध्यम बन गए हैं। यह स्वतंत्रता का दूसरा संघर्ष है।

मेरे दादाजी हमेशा कहा करते थे,‘आप विश्व में जो परिवर्तन देखना चाहते हैं, वह पहले खुद सेकरें।’ एक आरएसएस कार्यकर्ता से लेकर भारत के प्रधानमंत्री तक नरेन्द्र भाई की यात्रा को करीब से देखने के बादमैं बिना किसी दुविधा के कह सकती हूं कि नरेन्द्र मोदी उस बदलाव का साकार रूप हैं, जिसकी हम सभी अपने प्रिय देश में कामना करते रहे हैं।

यद्यपि मैं संतों की जीवनी में विश्वास नहीं करती हूं, लेकिन मुझे निष्पक्ष रहना चाहिए। बापूजी और नरेन्द्र भाई के बीच सबसे बड़ी समानता यह है कि उनका सार्वजनिक जीवन सनातन धर्म के आध्यात्मिक मूल से जुड़ा है। वे दोनों- स्थितप्रज्ञ हैं और प्रशंसा तथा आलोचना दोनों से ही उनका ध्यान अपने लक्ष्य के प्रति कभी नहीं डगमगाया है। ऐसा ही व्यक्ति जानता है कि अंततः सत्य की जीत होती है और इसलिए उसके रास्ते में धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने में कोई भी बाधा नहीं आती है। यह नरेन्द्र भाई की अपने राजनीतिक विरोधियों के लगातार हमलों के खिलाफ खामोशी की विशेषता को दर्शाता है। यह एक राजऋषि का लक्षण है।

हमारे शास्त्रों के अनुसार धर्म की पुनर्स्थापना से पहले हमेशा ही मंथन हुआ है और इस मंथन से पहली बार नकारात्मकता ही उत्पन्न होती है और ये नकारात्मक शक्तियां सत्य का विरोध करती हैं। अपने दैनिक जीवन में हम इस प्रकार की नकारात्मकता के साक्षी बनते हैं। राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए राष्ट्रीय हितों से भी समझौता किया जाता है। ऐसी परिस्थितियों मेंगरीबों और राष्ट्र हितों को सर्वोपरि रखने के लिए एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती है, जिसकी सत्ता में पूर्णतः कोई रुचि न हो और जो भ्रष्टाचार से परे हो। इसलिए यह स्वीकार करना हमारा कर्तव्य है कि भले ही नरेन्द्र भाई ने जो प्रयास किए हैं, हम उन परिणामों का आनंद ले रहे हैं, लेकिन उन्हें उचित चुनावी जनादेश नहीं मिला, मगर वे इससे अप्रभावित हैं और चुपचाप अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। मैं बिना किसी हिचकिचाहट के यह कहना चाहती हूं कि अगर आज बापूजी आज जीवित होते, तो वह नरेन्द्र भाई के बहुत बड़े समर्थक होते। बापूजी सबसे पहले वह व्यक्ति होते जो हमें उनके नाम का दुरुपयोग करने वाले बारे में चेतावनी देतेऔर जिन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए हमें आपस में बांटने के लिए इसका दुरुपयोग करना अपने जीवन का मिशन बना लिया है।

मेरे दादाजी और नरेंद्र भाई के कई आलोचकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि नरेन्द्र भाई ने वास्तव में आधुनिक भारत के विकास एजेंडे में गांधीजी के आदर्शों को एकीकृत करकेउन्हें फिर से जीवित किया है। राज्य की नीति के निर्देशक सिद्धांत देश की नीति बन गए हैं। ऐसा करके उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि गांधीजी की विरासत हमारी राष्ट्रीय सोच मेंप्रबल और निरंतर रूप से समाहित होती रहे।

मेरे दादाजी की तरह नरेन्द्र भाई को भी जन आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना होगा। लेकिनजैसा कि भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपना कर्म करो और उसका परिणाम सत्य पर छोड़ दो- जिसकी अंततः विजय होगी। मुझे विश्वास है कि इतिहास अंततः बापूजी और नरेन्द्र भाई दोनों के साथ न्याय करेगा।


In the 1970s sectarianism was continuing to eat away at the national fabric. As a Rajya Sabha member from Gujarat, I was deeply worried about the demographic change underway in the border districts due to heavy infiltration from Pakistan.The influx into Assam was even greater. No one in my Party, the Congress took serious note of this issue. But I clearly remember how Narendra Bhai even at that young age cared about such matters. He was clearly committed to national issues and the politics of the moment didn’t diffuse his focus.

Even in those days he was fully seized with the challenges that women faced in rural Bharat –personal hygiene; clean drinking water; primary health care for their families etc. Soon after becoming Prime Minister, he demonstratedexemplary courageand articulatedthe need for national cleanliness in his Independence Day speech. He launched the Swachh Bharat Abhiyan which improved sanitation and also the dignity and security of women across Bharat.My grandfather believed in ‘Jan Andolan’ – people’s movement as a basis of sustainable social change. Narendra Bhai’s unwavering focus on the word ‘Sabka’ as inSab ka saath, Sab ka vikas, Sab ka vishwas, andViksit Bharat is the same. These are not mere buzz words for him. Theyare his drivers. His ‘humanity first’ leadership during the Covid-19 pandemic did not stop at our border, but embraced the entire world. Then again, he swam against the tideto free us from the choking yoke of Article 370. He is systematically completing the agenda that should have been completed after gaining independence. CAA is a case in point.

In this great land of Sanatan Dharma, political freedom was won by the spiritual force of many Masters such as Sai Nath of Shirdi, Shri Ramana Maharshi etc., and Gandhiji became the instrument to spearheadthis. It is no coincidence that decades later, Narendra Bhai has become the instrument to free us from the colonial mind-set.A second struggle of independence.

My grandfather, always said, ‘Be the change you wish to see in the world.’ Having closely witnessed Narendra Bhai’s journey from an RSS worker to the Prime Minister of Bharat, I can say without a doubt that Narendra Modi personifies the change we have all longed for in our beloved Bharat.

While I do not subscribe to hagiography, I must be impartial. The most striking similarity between Bapuji and Narendra Bhai is that their public lives are rooted in the spiritual core of Sanatana Dharma. They both are – Sthithapragnya – unaffected by both, the bouquets and the brickbats. Such a person knows that Truth eventually prevails and therefore has no resistance to waiting patiently for that to happen. This would explain the characteristic silence of Narendra Bhai against relentless onslaughts by his political opponents. This is a sign of a Raja Rishi.

As per our scriptures before Dharma is restored, there is alwaysa churning. Negativity is the first output of such a churning, and these negative forces oppose Truth. Daily we are witness to the extentsof this negativity. Even national interests are compromised for political gains. In such circumstances, it takes a person who has absolutely no interest in power, and is incorruptible – to put the interests of the poor and the nation above everything else. It is therefore our duty to acknowledge that even as we enjoy the fruits of Narendra Bhai’s efforts,but did not give him the commensurate electoral mandate, he is unaffected and quietly continues with his duty. Let me state without hesitation that had Bapuji been alive today, he would have been a great supporter of Narendra Bhai. Bapuji would have been the first person to warn usabout those who have usurped his name and who have made it their life’s mission to misuse itto divide us for their political gains.

It will come as a surprise to the many detractors of my grandfather, and those of Narendra Bhai, thatNarendra Bhai has rejuvenated Gandhiji’s ideals by actually integrating them into modern Bharat’s development agenda. Directive principles of State policy have become State policy. By doing so he hasensured that Gandhiji’s legacycontinues to seep vigorously and ceaselessly into our nation’s psyche.

Narendra Bhai just like my grandfather will also have to stand the test of public scrutiny. But, as Lord Krishna told Arjuna, what matters is to do your job and leave the result to Truth – which will prevail eventually. I have faith that history will finally judge both Bapuji and Narendra Bhai kindly.

(Author is the granddaughter of Mahatma Gandhi)

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