राम से बड़ा राम का नाम

राम से बड़ा राम का नाम

प्रभु श्री राम का चरित्र हमारा वो सनातन इतिहास है जो इतने वर्षों बाद भी सम्पूर्ण विश्व की मानवता को वर्तमान तथा भविष्य की राह दिखा रहा है।

डॉ नीलम महेंद्र

लेखिका वरिष्ठ स्तम्भकार हैं

राम से बड़ा राम का नाम

वो त्रेता युग का समय था जब सूर्यवंशी महाराज दशरथ के घर कौशलनन्दन श्री राम का जन्म हुआ था।

समय कहाँ रुकता है भला ! तो वह अपनी गति से चलता रहा। आज हम द्वापर से होते हुए कलियुग में आ गए हैं। लेकिन इतने सहस्रों वर्षों के बाद भी, इतने युगों के पश्चात भी प्रभु श्री राम का चरित्र देश देशांतर की सीमाओं से परे, वर्षों और युगों के कालचक्र को लांघकर अनवरत सम्पूर्ण विश्व को आकर्षित करता रहा है।

“हरे रामा, हरे कृष्णा” का जाप आज वैश्विक स्तर पर एक अनूठी आध्यात्मिक सन्तुष्टि, परम् आनन्द की अनुभूति एवं मनुष्य को एक अलग ही आनन्दमय लोक में पहुँच जाने का अनुभव दिलाने वाला सर्व स्वीकार्य मंत्र बन चुका है।

दरअसल श्री राम का चरित्र ही ऐसा है। एक आदर्श पुत्र हो या एक आदर्श भ्राता (भाई), एक आदर्श पति हो या एक आदर्श राजा, एक आदर्श मित्र हो या फिर एक आदर्श शत्रु! राम मर्यादाओं में रहने वाले,पुरुषों में उत्तम, ऐसे “मर्यादा पुरूषोत्तम” हैं जिनका जीवन कठिनाइयों एवं संघर्षो से भरा रहा किंतु फिर भी मानव रूप में उन्होंने मुस्कुराते हुए सहज रूप से धर्म की राह पर चलते हुए इस प्रकार अपना जीवन व्यतीत किया कि इतने वर्षों बाद आज भी वह हमारा पथप्रदर्शक है।

कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि प्रभु श्री राम का चरित्र हमारा वो सनातन इतिहास है जो इतने वर्षों बाद भी सम्पूर्ण विश्व की मानवता को वर्तमान तथा भविष्य की राह दिखा रहा है।

इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि आज की 21 वीं सदी में भी जब आदर्श प्रशासन की बात की जाती है तो भारत ही नहीं विश्व भर में “रामराज्य” ही उसका प्रतिमान होता है।

यही कारण है कि हम यह कामना करते हैं कि, “नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल से घराना हो, चरण हों राघव के जहां मेरा ठिकाना हो”।

कहते हैं कि जब लंका जाने के लिए श्री राम की वानर सेना समुद्र के ऊपर पुल का निर्माण कर रही थी और वानर समुद्र में पत्थर फेंक रहे थे, तो प्रभु श्री राम ने देखा कि वानर समुद्र में पत्थर पर “राम” नाम लिखकर फेंक रहे हैं और पत्थर तैर रहे हैं। उन्होंने सोचा कि जब मेरा नाम लिखा पत्थर तैर रहा है तो यदि मैं कोई पत्थर फेंकूँ तो वो भी तैरेगा। यही सोचकर उन्होंने एक पत्थर उठाया और समुद्र में फेंका। लेकिन वो पत्थर डूब गया। वे आश्चर्य में पड़कर सोचने लगे कि ऐसा क्यों हुआ। दूर खड़े हनुमानजी यह सब देख रहे थे। कौतूहल वश श्री राम ने हनुमानजी से पूछा कि मेरे नाम के पत्थर समुद्र में तैर रहे हैं लेकिन जब मैंने वह पत्थर फेंका तो डूब गया ?

तब हनुमानजी बोले, प्रभु आपके नाम को धारण करके तो सभी अपने जीवन को पार लगा सकेते हैं, लेकिन जिसे आप स्वयं त्याग दें, भला उसे डूबने से कोई कैसे बचा सकता है!

इसीलिए कहा गया है कि राम से बड़ा राम का नाम। यह राम नाम की महिमा ही है कि प्रभु श्री राम के चरित्र पर सुनियोजित तरीके से अनेक आक्षेप लगाने के प्रयत्न किए गए लेकिन इसके बावजूद उनके प्रति भक्ति,श्रद्धा, प्रेम और समर्पण के भाव भौगोलिक समेत हर सीमा को लाँघते हुए वैश्विक स्तर पर मानव हृदय में समाहित होते चले गए।

सनातन विरोधियों द्वारा उन्हें मांस भक्षी बताया गया, उनपर अनैतिक रूप से वाली वध का आरोप लगाया गया, एक शूद्र शम्बूक के वध का आक्षेप लगाया गया, यहाँ तक कि उनके द्वारा सीता माता का परित्याग करना भी बताया गया।

जबकि सत्य तो यह है कि न तो कभी श्री राम और न ही किसी रघुवंशी ने कभी मांस का सेवन किया था, न उन्होंने वाली का वध अधर्मपूर्वक किया था, न उन्होंने किसी शम्बूक नामक शुद्र का वध किया था और न ही कभी सीता का परित्याग ही किया था। इस विषय को “रामा vs राम” पुस्तक में विस्तार से देखा जा सकता है।

वाल्मीकि रामायण जिसे सबसे प्राचीन एवं सबसे प्रमाणिक ग्रँथ माना जाता है और न ही तुलसीदास जी कृत रामचरित मानस में शम्बूक वध अथवा सीता परित्याग का कोई वर्णन है। बल्कि इनमें राम चरित्र का वर्णन ऐसा है कि राम जब पुत्र होते हैं तो अतुलनीय होते हैं और ये दशरथ नन्दन अपने माता पिता के प्राण होते हैं। जब शिष्य होते हैं तो बालक राम अपने गुरुओं का अभिमान होते हैं। जब भाई होते हैं तो भ्राता राम प्रेम और त्याग की मूरत होते हैं। जब पति होते हैं एक पत्नी व्रत धारण करने वाले अपनी पत्नी को समर्पित एक आदर्श पति “सियावर राम” होते हैं। और जब वे राजा होते हैं तो “राजा राम” युगों युगों तक जिसकी कोई समानता न कर पाए उस रामराज्य की स्थापना करते हैं। जब वे शस्त्र उठाते हैं तो धर्म की स्थापना के लिए और अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए उठाते हैं न कि अपने राज्य की सीमाओं के विस्तार करने के लिए। जब वे किष्किंधा के राजा वाली का वध करते हैं तो अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करने के लिए करते हैं और किष्किंधा के राज्य पर सुग्रीव का राज्याभिषेक कर देते हैं। जब रावण का वध करते हैं तब भी धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए शस्त्र उठाते हैं और विजय के उपरांत लँका के राजसिंहासन पर विभीषण का राज्याभिषेक कर देते हैं।

प्रभु श्री राम के चरित्र की उदारता देखिए कि जब राम और रावण युद्ध हो रहा था, तो लंकाधिपति रावण के सामने अपनी पत्नी के स्वाभिमान की रक्षा के लिए एक वनवासी खड़ा था। एक ओर जहां रावण रक्षा कवच और सारथी और आयुधों से युक्त रथ पर सवार था, वहीं राम बिना रथ, बिना कवच और बिना जूतों के धरती और खड़े हो कर युद्ध लड़ रहे थे। ऐसे में विभीषण चिंतित होकर श्री राम से कहते हैं कि इस स्थिति में रावण पर विजय कैसे प्राप्त होगी? तब प्रभु श्री राम की महानता देखिए, वे कहते हैं,

सौरज धीरज तेहि रथ चाका।

सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।

बल बिबेक दम परहित घोरे।

छमा कृपा समता रजु जोरे।।

ईस भजनु सारथी सुजाना।

बिरति चर्म संतोष कृपाना।।

दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा।

बर बिज्ञान कठिन कोदंडा।।

अमल अचल मन त्रोन समाना।

सम जम नियम सिलीमुख नाना।।

कवच अभेद बिप्र गुर पूजा।

एहि सम बिजय उपाय न दूजा।।

सखा धर्ममय अस रथ जाकें।

जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें।।

अर्थात वे विभीषण से कहते हैं कि जिस रथ से विजय होती है, वो रथ दूसरा ही है। शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं। सत्य और शील उसकी मजबूत ध्वज और पताका हैं। बल, विवेक, दम (इंद्रियों का वश में होना) और परोपकार, ये चार उसके घोड़े हैं जो क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं। ईश्वर का भजन ही उस रथ को चलाने वाला चतुर सारथी है। वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचंड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है। निर्मल पाप रहित और स्थिर मन तरकस के समान हैं। शम ( मन का वश में होना),यम (अहिंसा), नियम (शौच आदि), ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा कोई उपाय नहीं है। ऐसा धर्ममय रथ जिसके पास हो,उसके लिए जीतने को कहीं शत्रु ही नहीं है।

आज के समय में जब भृष्टाचार, स्वार्थ परायणता, अनैतिकता, द्वेष जैसे विकार हमारे समाज में हावी हैं, प्रभु श्री राम के द्वारा बताए गए ये गुण हमें मानवता को बचाने की निश्चित राह दिखाते हैं। वो राह जिस पर चलकर वे रावण जैसे शक्तिशाली असुर से युद्ध जीते।

उस राह पर भारत सदा से चलता है और विश्व को भी राह दिखाता रहा है। यही भारत की आध्यात्मिक शक्ति है! यही भारत की संस्कृति है!! यही भारत का गौरवशाली सनातन इतिहास है!!!

आज भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से निर्मित भव्य रामलला का मंदिर हमारे उसी सनातन इतिहास का गौरवशाली प्रतीक बन गया है।

 

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