पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग प्रेस की गरिमा के लिए खतरनाक।

पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग प्रेस की गरिमा के लिए खतरनाक।

राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते राजनेताओं और मीडिया घरानों के बीच सांठगांठ के परिणामस्वरूप अक्सर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग होती है और असहमति की आवाज़ों का दमन होता है। धमकियाँ और हमले: पत्रकारों को शारीरिक हिंसा, उत्पीड़न और धमकी का सामना करना पड़ता है, खासकर जब वे भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन या सांप्रदायिक तनाव जैसे संवेदनशील मुद्दों को कवर करते हैं। कभी-कभी पत्रकारों को चुप कराने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिए राजद्रोह, मानहानि और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम जैसे कानूनों का दुरुपयोग किया जाता है। मीडिया संगठन, विशेष रूप से छोटे संगठन, वित्तीय बाधाओं का सामना करते हैं, जिसके कारण पत्रकारिता मानकों से समझौता होता है और कॉर्पोरेट या राजनीतिक फंडिंग पर निर्भरता होती है।

-प्रियंका सौरभ

महात्मा गांधी का यह कथन कि “प्रेस की स्वतंत्रता एक अनमोल विशेषाधिकार है जिसे कोई भी देश त्याग नहीं सकता” आज के वैश्विक संदर्भ में दृढ़ता से प्रतिध्वनित होता है। भारत में, एक जीवंत और स्वतंत्र प्रेस न केवल संविधान में निहित एक मौलिक अधिकार है, बल्कि लोकतंत्र की आधारशिला भी है, जो एक प्रहरी, सूचना का प्रसारक और विविध आवाज़ों के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। हालाँकि, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की वर्तमान स्थिति विभिन्न चुनौतियों के कारण जांच के अधीन है। भारत में प्रेस स्वतंत्रता की वर्तमान स्थिति पर नज़र डाले तो भारत में एक विविध मीडिया परिदृश्य है जिसमें प्रिंट, प्रसारण और डिजिटल प्लेटफॉर्म शामिल हैं। हालाँकि यहाँ काफी हद तक स्वतंत्रता है, फिर भी प्रेस की स्वतंत्रता और अखंडता के संबंध में चिंताएँ उठाई गई हैं। सेंसरशिप, स्व-सेंसरशिप, राजनीतिक हस्तक्षेप और पत्रकारों पर हमलों की घटनाओं ने प्रेस की स्वतंत्रता के क्षरण के बारे में चिंता बढ़ा दी है।

राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते राजनेताओं और मीडिया घरानों के बीच सांठगांठ के परिणामस्वरूप अक्सर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग होती है और असहमति की आवाज़ों का दमन होता है। धमकियाँ और हमले: पत्रकारों को शारीरिक हिंसा, उत्पीड़न और धमकी का सामना करना पड़ता है, खासकर जब वे भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन या सांप्रदायिक तनाव जैसे संवेदनशील मुद्दों को कवर करते हैं। कभी-कभी पत्रकारों को चुप कराने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिए राजद्रोह, मानहानि और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम जैसे कानूनों का दुरुपयोग किया जाता है। मीडिया संगठन, विशेष रूप से छोटे संगठन, वित्तीय बाधाओं का सामना करते हैं, जिसके कारण पत्रकारिता मानकों से समझौता होता है और कॉर्पोरेट या राजनीतिक फंडिंग पर निर्भरता होती है। इंटरनेट ने मीडिया की पहुंच का विस्तार किया है, इसने गलत सूचना और फर्जी खबरों के प्रसार को भी बढ़ावा दिया है, जिससे पारंपरिक मीडिया आउटलेट्स की विश्वसनीयता कम हो गई है।

यह बहुत शर्मनाक बात है कि हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की आजादी की स्थिति पर कोई खतरा मंडराये। इस स्थिति के लिए किसी एक व्यक्ति या एक संस्था को जिम्मेवार मानना बहुत गलत होगा। लेकिन, इसके साथ ही यह भी सत्य है कि यह हमारे लिए आत्मचिंतन का समय है। यह आत्मचिंतन सरकारों को करनी है, नेताओं को करनी है, पत्रकार बंधुओं को करनी है, रिपोर्टरों को करनी है और खास तौर पर पत्रकारिता संस्थानों के मालिकों को करनी है, कि हम किस तरह की पत्रकारिता चाहते हैं। आज यह आत्मचिंतन का विषय है कि हम क्यों पत्रकार बने या आनेवाली पीढ़ियों में कोई क्यों पत्रकार बने। आज ये सवाल हमें अपने आप से पूछने हैं। साथ ही, किसी रैंकिंग आदि को देख कर यह समझना भी गलत है कि हम (प्रेस) बिल्कुल भी आजाद नहीं है। लेकिन, इतना सच जरूर है कि मीडिया में- खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में- आजकल खबरें कम, एजेंडा ज्यादा चलाया जा रहा है। यहीं आकर सबसे ज्यादा गलतियां होती हैं, क्योंकि खबरों को इकट्ठा करनेवालों पर संस्थान मालिकों का दबाव होता है। ज्यादातर तो मालिक ही संपादक होते हैं, जो एजेंडा चलाये जाने के जाल में फंस जाते हैं।

दरअसल, एजेंडा चलाना आज के दौर में मीडिया का बिजनेस मॉडल है और यह मॉडल जब तक रहेगा, तब तक तो प्रेस पर सवाल उठते रहेंगे कि आखिर वह कितना आजाद है और उस पूंजी कितनी हावी है।यहां पर एक बात बड़ी महत्वपूर्ण हो जाती है। वह यह कि मौजूदा दौर की वेब पत्रकारिता यानी डिजिटल मीडया इस बिजनेस मॉडल से थोड़ी अप्रभावित है, क्योंकि इसे चलाने में कम खर्च होने के चलते इस पर दबाव कम रहता है। प्रेस की स्वतंत्रता को कायम रखने के संभावित उपाय देखें तो कानूनी सुधार से उन कानूनों को संशोधित या निरस्त करें जिनका उपयोग प्रेस की स्वतंत्रता को कम करने के लिए किया जाता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी के साथ संरेखित हों। पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए धमकियों या हमलों का सामना करने वाले पत्रकारों को पर्याप्त सुरक्षा और कानूनी सहायता प्रदान करना तथा अपराधियों को जवाबदेह ठहराना होगा।
मीडिया साक्षरता के माध्यम से प्रचार और गलत सूचना से विश्वसनीय जानकारी को पहचानने के लिए जनता को शिक्षित करने के लिए मीडिया साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना होगा।

नैतिक पत्रकारिता हेतु मीडिया संस्थानों को पेशेवर नैतिकता और मानकों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करना, तथा ईमानदारी और जवाबदेही की संस्कृति को बढ़ावा देना और स्वतंत्र मीडिया के लिए बाहरी प्रभावों पर निर्भरता कम करने के लिए स्वतंत्र मीडिया संगठनों को वित्तीय सहायता और नियामक समर्थन प्रदान करना कारगर उपाय होगा। महात्मा गांधी द्वारा मान्यता प्राप्त स्वस्थ लोकतंत्र के कामकाज के लिए स्वतंत्र प्रेस का अधिकार आवश्यक है। जबकि भारत में एक जीवंत मीडिया परिदृश्य है, प्रेस की स्वतंत्रता के लिए चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए सरकार, मीडिया संगठनों, नागरिक समाज और जनता के ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। प्रेस की स्वतंत्रता को कायम रखकर, भारत अपने लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूत कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसके नागरिकों की आवाज़ बिना किसी डर या पक्षपात के सुनी जाए।

“Safeguarding Press Freedom: Challenges and the Path Ahead #PressFreedom #MediaEthics #Democracy”

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