शिमला कनेक्शन से उठी हलचल: पीएमओ में हीरेन जोशी की चुपचाप विदाई, आरोपों पर केंद्र की कड़ी कार्रवाई से बढ़ी सरगर्मियां

प्रधानमंत्री कार्यालय में संवेदनशील हलचल: हीरेन जोशी की विदाई ने उठाए कई गंभीर सवाल, आरोपों पर कार्रवाई से सख्त होती व्यवस्था का संकेत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी माने जाने वाले अधिकारी हीरेन जोशी को हाल ही में सेवा-तीर्थ से अचानक पद से हटाए जाने की खबर ने राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में गहरी हलचल पैदा कर दी है। यह घटना इसलिए भी संवेदनशील मानी जा रही है क्योंकि जोशी पिछले करीब दो दशक से प्रधानमंत्री मोदी के साथ विभिन्न रूपों में जुड़े रहे थे और पीएमओ में उनकी प्रभावशाली भूमिका किसी से छिपी नहीं थी।

सूत्रों के अनुसार, हीरेन जोशी को पीएमओ में मीडिया प्रबंधन और संचार रणनीति का मुख्य वास्तुकार माना जाता था। वर्ष 2014 के बाद उन्होंने राष्ट्रीय मीडिया—प्रिंट, टीवी, मैगज़ीन और डिजिटल—के साथ सरकार के संवाद को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई वरिष्ठ पत्रकारों और संपादकों ने भी अक्सर माना कि जोशी पीएमओ की रणनीतिक टीम में एक अत्यंत प्रभावशाली व्यक्ति थे।

लेकिन हाल के दिनों में उन पर कुछ गंभीर आरोप उभरकर सामने आए हैं, जिनकी जांच की प्रक्रिया अभी प्रारंभिक स्तर पर बताई जा रही है। मीडिया रिपोर्टों और कुछ अनौपचारिक सूत्रों के अनुसार, जोशी का नाम एक कथित ऑनलाइन बेटिंग ऐप से वित्तीय लेन-देन में जुड़ने के आरोपों में सामने आया है। यह बेटिंग ऐप IVAK एंटरटेनमेंट गेम्स नाम से जुड़ा बताया जा रहा है, जिसकी पंजीकरण देहरादून में होने की बात कही जा रही है।

एक अन्य दावा यह भी है कि इस ऐप से संबंधित फर्म का संबंध प्रसार भारती के पूर्व चेयरमैन नवनीत सहगल के परिवार से जोड़ा जा रहा है। उनका बेटा इसका करता धरता था और और अब जांच से सामने आने पर इनको भी जाने के लिए कह दिया गया,

हालांकि इन आरोपों की आधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं हुई है। रिपोर्टों के अनुसार, सहगल को भी अपने पद से हटाए जाने की कार्रवाई की गई है।

पीएमओ के भीतर इन घटनाओं को केवल भ्रष्टाचार या वित्तीय अनियमितताओं से जोड़कर नहीं देखा जा रहा, बल्कि कुछ सूत्र यह भी दावा करते हैं कि हीरेन जोशी की भूमिका हिमाचल प्रदेश की एक महिला शिक्षाविद् को राज्य की राजनीति में किसी महत्वपूर्ण पद पर लाने की कोशिशों तक पहुंचने लगी थी। बताया जाता है कि यह महिला चंडीगढ़ के समीप एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में कुलपति हैं और शिमला से संबंध रखती हैं। इस दावे की भी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है, लेकिन पीएमओ के संवेदनशील ढांचे में इस तरह की राजनीतिक सक्रियता को गंभीर उल्लंघन माना जाता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री कार्यालय भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग को लेकर बिल्कुल शून्य सहनशीलता की नीति अपनाए हुए है। ऐसे में किसी भी स्तर पर अनियमितता की आशंका उठते ही कठोर कदम उठाया जाना इस नीति का हिस्सा माना जाता है। यही कारण है कि जैसे ही आरोपों की प्रारंभिक जानकारी उच्च स्तर पर पहुंची, तत्काल कार्रवाई की गई और संबंधित अधिकारियों को पद से हटाया गया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह  प्रधानमंत्री मोदी का यह एक्शन उनकी उस सार्वजनिक छवि से मेल खाता है जिसमें वे भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर रुख अपनाने की बात करते आए हैं। लेकिन साथ ही यह घटनाक्रम इस बात को भी उजागर करता है कि सत्ता के भीतर कुछ ऐसे नेटवर्क सक्रिय हो जाते हैं जो व्यक्तिगत प्रभाव का उपयोग कर अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश करते हैं। ऐसे में समय रहते कार्रवाई करना सरकार की पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए अनिवार्य हो जाता है।

फिलहाल इस पूरे मामले की आधिकारिक जांच और विवरण सामने आना बाकी है। लेकिन एक बात स्पष्ट है—प्रधानमंत्री कार्यालय में शीर्ष स्तर पर हुई यह कार्रवाई प्रशासनिक अनुशासन को मजबूत करने और किसी भी तरह की अनियमितता के प्रति सख्त संदेश देने का प्रतीक है।

जब तक जांच की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं होती, तब तक इस प्रकरण को केवल आरोपों, दावों और प्रारंभिक सूचनाओं के आधार पर देखा जाना चाहिए, और किसी भी व्यक्ति की भूमिका को अंतिम रूप से सिद्ध नहीं माना जाना चाहिए।

यह घटनाक्रम शासन व्यवस्था के भीतर सतर्कता और पारदर्शिता की अनिवार्यता को फिर से रेखांकित करता है।

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