हरियाणा से राज्यसभा चुनावों में वर्ष 2022 में जो राजनीतिक घटनाक्रम सामने आया था, उसकी परतें अब धीरे-धीरे खुलने लगी हैं। जून 2022 में हुए इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन बहुत ही कम अंतर से हार गए थे और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे कार्तिकेय शर्मा विजयी घोषित हुए थे। हाल ही में एक सोशल मीडिया पॉडकास्ट में कार्तिकेय शर्मा ने यह खुलासा कर दिया कि उन्हें कांग्रेस के दो तत्कालीन विधायकों—कुलदीप बिश्नोई और किरण चौधरी—का समर्थन मिला था। यह खुलासा अब कांग्रेस की आंतरिक राजनीति को फिर से सुर्खियों में ले आया है, क्योंकि इस चुनाव की हार की सबसे बड़ी वजहों में से एक कांग्रेस विधायक द्वारा जानबूझ कर या अनजाने में गलत ढंग से वोट डालना भी था, जिससे माकन के वोट एक कम हो गए थे और कार्तिकेय को परोक्ष लाभ मिला था।
रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने जैसे ही इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दी, यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस के अंदरूनी गलियारे में तीन साल से दबी ये बात अब औपचारिक बहस का मुद्दा बन चुकी है। इस चुनाव के दौरान कांग्रेस के पास हरियाणा विधानसभा में 31 विधायक थे, पर गिनती के बाद पता चला कि केवल 29 वैध वोट ही माकन को मिले। कुलदीप बिश्नोई का क्रॉस वोटिंग करना सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया जा चुका है, और कांग्रेस ने तब उन्हें सभी पदों से हटा दिया था। बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए। लेकिन वह दूसरा विधायक कौन था जिसने तकनीकी गलती से माकन के समर्थन में दिया गया वोट अमान्य करवा दिया, यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है।
एडवोकेट हेमंत कुमार, जो चुनावी मामलों के जानकार माने जाते हैं, बताते हैं कि मतदान प्रक्रिया में हर पार्टी का एक अधिकृत एजेंट मौजूद होता है जो पार्टी विधायकों द्वारा डाले गए वोटों को देखकर पुष्टि करता है कि किस उम्मीदवार को समर्थन दिया गया। कांग्रेस की ओर से उस समय विवेक बंसल अधिकृत एजेंट थे, जिन्होंने स्वयं दो बार कांग्रेस विधायकों द्वारा डाले गए वोट देखे थे। सवाल यह है कि अगर बंसल ने सारे वोट देखे थे, तो उन्हें यह कैसे नहीं पता चला कि किस विधायक ने गलती की थी? क्या उन्होंने जानबूझकर यह नाम छुपाया, या तकनीकी प्रक्रिया में कोई चूक हो गई?
हेमंत के अनुसार, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में 2003 के संशोधन के बाद राज्यसभा चुनाव में ओपन बैलट की व्यवस्था लागू है। इसके तहत पार्टी विधायकों को वोट डालने से पहले अधिकृत एजेंट को दिखाना आवश्यक होता है। अगर कोई विधायक ऐसा नहीं करता तो उसका वोट स्वतः रद्द माना जाता है। यही नहीं, अगर वोट को किसी गलत तरीके से या किसी और को दिखाकर डाला गया हो तो भी वह अमान्य हो जाता है।
बिश्नोई ने भले ही माकन को वोट न देकर पार्टी लाइन तोड़ी, लेकिन उन्होंने कांग्रेस एजेंट को वोट दिखाया था, जिससे उनका वोट वैध रहा। वहीं, जो एक अन्य कांग्रेस विधायक का वोट अमान्य हुआ, उसने कांग्रेस उम्मीदवार के नाम के सामने ‘1’ नंबर लिखने के बजाय टिक मार्क कर दिया था, जो कि नियमों के अनुसार गलत था। इससे कांग्रेस को एक महत्वपूर्ण वोट का नुकसान हुआ और चुनाव की तस्वीर ही पलट गई।
आज जब यह स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस की हार के लिए दो मुख्य कारण थे—एक क्रॉस वोटिंग और दूसरा अमान्य वोट—तो सवाल उठता है कि पार्टी ने तीन साल तक उस विधायक का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किया जिसने गलत ढंग से वोट डाला? क्या पार्टी नेतृत्व जानबूझकर यह मामला दबा रहा है ताकि उस समय की आंतरिक गुटबाज़ी उजागर न हो?
एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा मतगणना के बाद भी पार्टियों को यह अधिकार होता है कि वे अपने विधायकों द्वारा डाले गए वोटों की पुष्टि कर सकें। ऐसे में यदि विवेक बंसल ने यह कार्य किया था, तो उन्हें पता होना चाहिए था कि किस विधायक ने गलती की थी। यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया या नतीजे जानकर भी पार्टी को नहीं बताया, तो उनकी भूमिका पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है।
हरियाणा की राजनीति में इस प्रकरण का गूंजना फिर से कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे पर सवाल उठाता है। जब विपक्षी पार्टियां पार्टी की हार के लिए कारण ढूंढ रही थीं, तब कांग्रेस अपने ही भीतर के तथ्यों को छिपाने में लगी थी। अब जब कार्तिकेय शर्मा स्वयं कह रहे हैं कि किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई ने उन्हें वोट दिया, तो कांग्रेस नेतृत्व की जिम्मेदारी बनती है कि वह जनता के सामने पूरी सच्चाई रखे। राजनीतिक पारदर्शिता और जवाबदेही लोकतंत्र की आत्मा होती है और ऐसे मौकों पर पार्टी की चुप्पी कहीं न कहीं उसकी आंतरिक ईमानदारी पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
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