अब दिल्ली से चल रही है ‘नई चाल’ — हिमाचल कांग्रेस का नया दौर, नई मुश्किलें
हिमाचल में राजनीति कोई सीधी रेखा नहीं—यह पहाड़ी रास्ता है, जिसमें हर मोड़ पर ढलान भी है और खड़ी चढ़ाई भी। और अब कांग्रेस उस मोड़ पर खड़ी है, जहाँ से रास्ता साफ भी दिखता है और डरावना भी। दिल्ली से एक बड़ा संदेश आया है—प्रदेश की कमान अब एक दलित नेता, विनय कुमार के हाथ में। यह बदलाव सिर्फ चेहरा बदलना नहीं, बल्कि कांग्रेस के अंदर 35 बरस बाद सोच, शैली और शक्ति-संतुलन बदलने की कोशिश है।
राहुल गांधी का असली संदेश — बदलाव ऊपर से नहीं, नीचे तक
राहुल गांधी की हाल की राजनीतिक लाइन साफ है—संगठन में सामाजिक प्रतिनिधित्व को सिर्फ नारे में नहीं, पद में उतारना। हिमाचल में SC नेतृत्व को फिर से सामने लाकर वह यह बताना चाहते हैं कि कांग्रेस “पुरानी कुनबे वाली राजनीति” से धीरे-धीरे बाहर निकल रही है।
पर सवाल यह है—क्या हिमाचल की कांग्रेस वाकई इस बदलाव को झेल पाएगी?
सुक्खू युग के भीतर की खामोशी अब सतह पर
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू खुलकर फैसले लेने वाले नेता माने जाते हैं—पर कभी-कभी यह decisiveness, संगठन को लगे कि ‘हमसे पूछने की ज़रूरत ही क्या?’
बीते साल भर में कई नियुक्तियाँ, कई फैसले और कई टकराव यही बताते हैं। अब जब नया अध्यक्ष आ गया है, तो उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती यहीं है—**संगठन को चलाना और सरकार की तेज रफ़्तार को भी साधना।
नई सोच और पुराने ढर्रों की टक्कर अब लगभग तय है — और इसे संभालना विनय कुमार के लिए आसान नहीं होगा।
वीरभद्र सिंह का दौर ख़त्म नहीं हुआ, सिर्फ बदला है
हिमाचल में एक सच हमेशा स्थिर रहा—कांग्रेस का ‘तंत्र’ कोई भी चलाए, उसकी ‘धड़कन’ वीरभद्र सिंह ही रहे।
उनकी राजनीति, उनका कद, उनका जनाधार—ये चीजें आज भी कांग्रेस की बुनियाद हैं।
उनके जाने के बाद रानी प्रतिभा सिंह ने इस विरासत को थामे रखा। साफ था कि प्रदेश अध्यक्ष उनका ही उम्मीदवार होगा। लेकिन हाईकमान की राजनीति कुछ और ही कह रही थी। नया अध्यक्ष उनके खेमे से नहीं आया—और यह बात शिमला से लेकर मंडी तक उनके समर्थकों को नागवार भी है और खामोश भी नहीं रहने देगी।
विक्रमादित्य की भूमिका—पहाड़ी राजनीति की सबसे अनिश्चित चाल
कई बार यह चर्चा उठ चुकी है कि
क्या विक्रमादित्य BJP में जा सकते हैं?
यह बात अफवाह हो सकती है, लेकिन राजनीति में अफवाह भी हवा का रुख बताती है।
अब नया अध्यक्ष आने के बाद उनकी भूमिका और भी संवेदनशील हो जाती है।
क्योंकि कांग्रेस के कई विधायक, मंत्री, संगठन के पुराने स्तंभ—सब वीरभद्र परंपरा से आते हैं। और यह खेमेबाज़ी किसी भी वक्त भड़की आग की तरह फैल सकती है।
आने वाला समय—कांग्रेस के लिए पहाड़ की असली चढ़ाई
सुक्खू, विनय कुमार और प्रतिभा सिंह—तीनों को साथ लेकर चलना, शायद पिछले 20 सालों में कांग्रेस की सबसे कठिन राजनीतिक परीक्षा है।
और बीजेपी?
वो ऐसे मौकों का इंतज़ार नहीं करती—वो ऐसे मौकों को बनाती है।
जैसे-जैसे कांग्रेस के भीतर तनाव बढ़ता है, वैसे-वैसे बीजेपी के पास अवसर बढ़ते जाते हैं।
क्या सरकार गिराने की कोशिश हो सकती है?
हिमाचल की राजनीति में यह सवाल नए नहीं हैं।
पहले भी ऐसे संकेत देते रहे हैं कि कुछ कांग्रेस नेता बीजेपी की ओर झुकने लगे थे।
और अब जब प्रदेश अध्यक्ष बदला है, समीकरण भी बदलेंगे, निष्ठाएँ भी बदल सकती हैं।
इस बीच, कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई भूमिका भी नजरअंदाज नहीं की जा सकती।
हिमाचल में उनकी पकड़ पुरानी है, और केंद्र में उनकी स्थिति अब बीजेपी के लिए एक बड़ा उपयोगी कार्ड है।
यह कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई भर नहीं, हिमाचल की नई दिशा का संघर्ष है
हिमाचल कांग्रेस अब दो ध्रुवों के बीच झूल रही है—
एक तरफ नई राजनीति की चाह, दूसरी तरफ पुरानी विरासत की पकड़।
नया अध्यक्ष उस पुल की तरह होगा जिसे दोनों सिरों को जोड़ना है—लेकिन पहाड़ों में पुल टिके तभी रहते हैं जब नींव गहरी हो।
यह दौर हिमाचल कांग्रेस को बनाएगा भी, और परखेगा भी।
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