शिमला —
हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) शिमला में ऑन-ड्यूटी डॉक्टर द्वारा मरीज के साथ मारपीट की घटना ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है। करीब 15 सेकंड का एक वीडियो सामने आने के बाद यह मामला पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गया है। वीडियो में आरोपी डॉक्टर द्वारा मरीज के साथ कथित रूप से अभद्र व्यवहार और मारपीट करते हुए देखा जा रहा है, जिससे न केवल मरीज और उसके परिजनों में आक्रोश है, बल्कि आम जनता के बीच भी गहरी नाराजगी है।

मामले के सामने आते ही अस्पताल परिसर में तनाव का माहौल बन गया। मरीज के परिजन और अन्य लोग अस्पताल के भीतर धरने पर बैठ गए और आरोपी डॉक्टर की गिरफ्तारी की मांग करने लगे। लोगों का कहना है कि जिस अस्पताल में मरीज इलाज और भरोसे की उम्मीद लेकर आते हैं, वहां इस तरह की हिंसक और अहंकारी मानसिकता किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं की जा सकती।
आईजीएमसी प्रबंधन ने तत्काल कार्रवाई करते हुए आरोपी डॉक्टर राघव नरूला को ड्यूटी से हटा दिया है और उन्हें अवकाश पर भेज दिया गया है। पुलिस ने भी मामले में केस दर्ज कर लिया है और जांच शुरू कर दी गई है। प्रशासनिक स्तर पर भी इस घटना को गंभीरता से लिया गया है।
घटना के बाद स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य सचिव, आईजीएमसी के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट और कार्यकारी प्रिंसिपल के बीच एक उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की गई। बैठक में यह बात सामने आई कि आरोपी डॉक्टर के खिलाफ पहले भी व्यवहार से जुड़ी शिकायतें आ चुकी हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मरीजों के साथ इस तरह का अहंकारी और अमानवीय व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषी चाहे किसी भी पद पर हो, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
यह मामला केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं माना जा रहा, बल्कि इससे डॉक्टर बिरादरी के आचरण पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। बीते कुछ वर्षों में प्रदेश के अन्य मेडिकल संस्थानों से भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं। कांगड़ा जिले के टांडा मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों के व्यवहार को लेकर पहले भी विवाद हुआ था, वहीं हाल ही में चंबा में भी एक डॉक्टर के कथित दुर्व्यवहार का मामला सुर्खियों में रहा। इन घटनाओं ने यह संकेत दिया है कि स्वास्थ्य संस्थानों में संवाद, संवेदनशीलता और पेशेवर आचरण को लेकर गंभीर आत्ममंथन की जरूरत है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि डॉक्टरों पर काम का दबाव और संसाधनों की कमी एक अलग मुद्दा है, लेकिन इसका असर मरीजों के साथ व्यवहार पर नहीं पड़ना चाहिए। डॉक्टर और मरीज का रिश्ता विश्वास पर आधारित होता है, और जब वही भरोसा टूटता है तो पूरी व्यवस्था की साख पर सवाल उठता है।
अब यह मांग तेज हो गई है कि सरकार केवल तात्कालिक कार्रवाई तक सीमित न रहे, बल्कि ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सख्त और स्पष्ट नीति बनाए। अस्पतालों में शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत किया जाए, डॉक्टरों के व्यवहार और पेशेवर आचरण पर नियमित निगरानी हो, और दोषी पाए जाने पर उदाहरणात्मक कार्रवाई की जाए।
आईजीएमसी की यह घटना सरकार के लिए एक चेतावनी भी मानी जा रही है कि यदि समय रहते कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो स्वास्थ्य सेवाओं पर लोगों का भरोसा कमजोर पड़ सकता है। अब सबकी निगाहें जांच के निष्कर्ष और सरकार की आगे की कार्रवाई पर टिकी हैं, जिससे यह तय होगा कि मरीजों की गरिमा और सुरक्षा को वास्तव में कितनी गंभीरता से लिया जाता है।





