किसानों की आड़ में विदेशी साजिश: सोरोस का भारतीय कृषि पर हमला

किसानों की आड़ में विदेशी साजिश: सोरोस का भारतीय कृषि पर हमला

ठाकुर गुणीप्रकाश
प्रदेशाध्यक्ष भाकियू हरियाणा.
प्रधानमंत्री एमएसपी समिति के सदस्य, भारत

भारत के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह का हाल ही में ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ (SFJ) पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान में यह धारणा तेजी से मजबूत हो रही है कि विदेशी ताकतें भारत के आंतरिक सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करने के लिए सुनियोजित तरीके से काम कर रही हैं। यह सिर्फ कुछ अलग-थलग घटनाओं की प्रतिक्रिया नहीं है—यह भारत की आंतरिक चुनौतियों का फायदा उठाकर भू-राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए एक संगठित और सुनियोजित प्रयास को सीधे तौर पर स्वीकार करने का संकेत है। इस पूरी साजिश के केंद्र में है जॉर्ज सोरोस द्वारा संचालित ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF), जो आर्थिक सहायता, वैचारिक घुसपैठ और राजनीतिक हस्तक्षेप के माध्यम से भारत के आंतरिक मामलों को व्यवस्थित रूप से प्रभावित कर रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में भारत में जो किसान आंदोलन हुए हैं, वे केवल घरेलू नीतियों के प्रति असंतोष का परिणाम नहीं हैं। ये आंदोलन सोरोस के वैश्विक नेटवर्क से गहराई से जुड़े हुए हैं, जो सामाजिक दरारों का फायदा उठाकर भारत की संप्रभु निर्णय-प्रक्रिया को कमजोर करने के इरादे से काम कर रहा है।
भारतीय किसान की बदलती छवि
एक भारतीय किसान का चित्र—पसीने से तर-बतर, सूखे खेत में खड़ा, अनिश्चित आकाश को ताकता हुआ—अब बीते जमाने की बात हो गई है। भारत सरकार की ओर से प्रत्यक्ष समर्थन और बाजार हस्तक्षेपों की बाढ़ के कारण भारतीय कृषि में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है। देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले किसान आज भी देश को आत्मनिर्भर बनाए हुए हैं। लेकिन अब उनके आंदोलन, प्रदर्शन और मांगें केवल कृषि नीतियों और उचित कीमतों तक सीमित नहीं रह गई हैं। अब ये आंदोलन अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण, छिपे हुए राजनीतिक एजेंडे और ऐसे वित्तीय नेटवर्क में उलझ गए हैं, जिनका खेती से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है।
जो आंदोलन कभी किसानों के अधिकारों के लिए एक जमीनी संघर्ष था, वह अब उन ताकतों द्वारा संचालित किया जा रहा है जिनका कृषि से कोई लेना-देना नहीं है। इस पूरे घटनाक्रम के पीछे छिपा हुआ चेहरा है जॉर्ज सोरोस और उनकी ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF)।
कैसे हो रही है आर्थिक घुसपैठ?
भारतीय किसानों ने ऐतिहासिक रूप से बेहतर कीमतों, बाजार तक पहुंच और शोषणकारी नीतियों से बचाव के लिए संघर्ष किया है। उनके प्रदर्शन हमेशा से कॉरपोरेट हस्तक्षेप का विरोध करने, उचित सब्सिडी की मांग करने और वैश्वीकरण के दौर में पीछे न छूटने की कोशिशों के इर्द-गिर्द रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों में इसमें एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
अब ये आंदोलन वास्तविक कृषि संकट के बजाय बाहरी वित्तपोषण और अज्ञात आर्थिक शक्तियों द्वारा निर्देशित किए जा रहे हैं। OSF ने अपनी वैश्विक नेटवर्क के माध्यम से भारत के ग्रामीण आंदोलनों में रणनीतिक रूप से पूंजी और प्रभाव को डाला है—लेकिन यह किसानों को सशक्त करने के लिए नहीं, बल्कि भारत की आंतरिक शासन व्यवस्था को कमजोर करने और पश्चिमी आर्थिक-राजनीतिक हितों को साधने के लिए किया गया है।
किसान आंदोलन कैसे बने विदेशी खेल का हिस्सा?
2020-21 के किसान आंदोलन इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे सोरोस का नेटवर्क घरेलू आंदोलनों में घुसपैठ कर भू-राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा है। जो आंदोलन न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए शुरू हुआ था, वह अचानक एक संगठित और अत्यधिक वित्तपोषित राजनीतिक आंदोलन में बदल गया। इसके पीछे एक सुव्यवस्थित लॉजिस्टिक तंत्र, वैश्विक मीडिया समर्थन और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक हस्तियों के सार्वजनिक समर्थन का आधार था।
OSF से जुड़े संगठनों ने भारतीय गैर-लाभकारी संस्थाओं और कार्यकर्ता समूहों को “लोकतांत्रिक आंदोलनों” और “मानवाधिकार” के नाम पर फंडिंग दी है। लेकिन असली उद्देश्य इन आंदोलनों को भारतीय सरकार के खिलाफ एक राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग करना था।
अंतरराष्ट्रीय समर्थन और राजनीतिक खेल
कनाडा के राजनेताओं, विशेष रूप से पंजाबी प्रवासी बहुल क्षेत्रों से, किसान आंदोलन को खुला समर्थन मिला। सार्वजनिक समर्थन के बयान, फंड जुटाने के अभियान और विदेशी धरती पर रैलियों ने यह स्पष्ट किया कि स्थानीय कृषि आंदोलन अब एक वैश्विक कूटनीतिक मुद्दा बन चुका है। कनाडा की लिबरल पार्टी, जो OSF समर्थित थिंक टैंकों और लॉबिंग समूहों से प्रभावित रही है, ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किसान आंदोलन को जोर-शोर से उठाया।
सॉवरेन गारंटी फंड (SGF) का खेल
सॉवरेन गारंटी फंड (SGF) भी जांच के दायरे में है। इसे बड़े पैमाने पर कृषि परियोजनाओं के लिए वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया है। लेकिन इसके पीछे की असली कहानी कहीं अधिक जटिल है—एक ऐसी कहानी, जहां विदेशी सरकारें और वित्तीय संस्थाएं स्थानीय किसान आंदोलनों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए प्रभाव डाल रही हैं।
सोरोस का नेटवर्क विकासशील देशों में सॉवरेन फंड स्थापित करने और प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका है। इन फंड्स को अक्सर ऐसी नीतियों से जोड़ा गया है जिनका लाभ स्थानीय किसानों के बजाय पश्चिमी वित्तीय संस्थानों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को हुआ है।
भारतीय किसान बन रहे हैं अंतरराष्ट्रीय खेल का मोहरा
किसानों के लिए यह केवल वित्तीय सहायता का मामला नहीं है, बल्कि उनके आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के खेल में एक हथियार के रूप में उपयोग किए जाने का भी खतरा है। किसान, जो अपनी उपज के लिए उचित कीमत की मांग कर रहे हैं, उन्हें अनजाने में अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक सौदेबाजी के मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
अब समय है आत्मरक्षा का
राजनाथ सिंह के बयान ने इस खतरे की गंभीरता को रेखांकित किया है। भारत सरकार को भारतीय कृषि क्षेत्र को बाहरी हस्तक्षेप और छिपे हुए आर्थिक एजेंडों से बचाने के लिए सतर्क रहना होगा। किसानों के आंदोलन को पश्चिमी ताकतों के लिए एक राजनीतिक मंच बनने से बचाना होगा।
भारतीय कृषि की दिशा भारतीय किसान ही तय करेंगे, न कि विदेशी पूंजी या वैश्विक लॉबी। किसानों की लड़ाई सिर्फ आज के लिए नहीं है, यह उन पीढ़ियों के लिए है जो इस भूमि, इस ज्ञान और इस विरासत को आगे बढ़ाएंगी।
कृषि भवन की सुरक्षा साउथ ब्लॉक से ज्यादा मजबूत होनी चाहिए, क्योंकि असली खतरा विदेशी पूंजी और वैश्विक कॉरपोरेट के गठजोड़ से है। भारतीय किसानों की असली ताकत उनकी मिट्टी और उनकी संप्रभुता में है।

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