मंडी, बीरबल शर्मा: हिमाचल प्रदेश—हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक शहर मंडी में स्थित 150 साल पुराना सुकेती पुल आज अपनी उम्र से नहीं, बल्कि उस लापरवाही से खतरे में है जो स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर कर रही है। यह आर्क शैली में बना पत्थर का पुल, जिसे मंडी शहर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है, इन दिनों अपनी संरचना पर उग आए विशालकाय पेड़ों के कारण संकट में है। हैरानी की बात यह है कि यह वही पुल है, जो हर रोज हजारों वाहनों का भार उठाकर शहर की जीवनरेखा बना हुआ है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं।
पिछले कुछ वर्षों में देश भर से पुलों के गिरने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं, जिनमें कई निर्दोष लोगों ने अपनी जान गंवाई है। इसके बावजूद मंडी जैसे संवेदनशील भौगोलिक क्षेत्र में पुलों की सुरक्षा को लेकर गंभीरता नदारद है। सुकेती पुल की हालत यह है कि उस पर पीपल सहित कई अन्य वृक्ष उग आए हैं, जिनकी जड़ें अब पुल की पत्थर से बनी संरचना को चीरती जा रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, जैसे-जैसे इन पेड़ों की जड़ें गहरी होंगी, वे पुल में दरारें डालकर उसकी नींव को कमजोर कर सकती हैं, जिससे कभी भी बड़ी दुर्घटना घट सकती है।
यह पुल न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि मंडी की सांस्कृतिक पहचान और यातायात व्यवस्था का अहम हिस्सा भी है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि नगर निगम, लोक निर्माण विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारी इस पुल से रोजाना गुजरते हैं, फिर भी किसी की नजर इस खतरे पर नहीं पड़ रही। इस पुल की दीवारों में धंसती जड़ें और दरारें साफ इशारा कर रही हैं कि यदि अब भी समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो यह पुल भी किसी दिन अख़बार की सुर्खियों में “गिरा पुल” बनकर रह जाएगा।
पूर्व पार्षद अवनिंदर सिंह ने इस विषय को गंभीरता से उठाते हुए लोक निर्माण विभाग, नगर निगम और जिला प्रशासन से आग्रह किया है कि वे तुरंत पुल पर उगे पेड़ों को हटाकर इसकी संरचना को सुरक्षित करें। उनका कहना है कि यह पुल न केवल यातायात के लिए आवश्यक है, बल्कि यह मंडी की ऐतिहासिक विरासत भी है, जिसे बचाना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।
मंडी जैसे पहाड़ी इलाकों में प्राकृतिक आपदाएं और भूगर्भीय अस्थिरता पहले से ही जोखिम का कारण बनी हुई हैं। ऐसे में यदि इस ऐतिहासिक पुल की अनदेखी की जाती रही, तो यह लापरवाही भविष्य में किसी बड़ी त्रासदी का कारण बन सकती है।
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