हरियाणा के हिसार जिले के नारनौंद थाना क्षेत्र स्थित खुशी कॉलेज ऑफ नर्सिंग, कागसर में कथित अनियमितताओं और छात्राओं के उत्पीड़न का मामला लगातार गंभीर होता जा रहा है। कॉलेज की छात्राओं ने परिसर के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए प्रबंधन पर न केवल शैक्षणिक और छात्रावास से जुड़ी अनियमितताओं, बल्कि यौन और मानसिक उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। छात्राओं का कहना है कि अब यह लड़ाई केवल पढ़ाई की गुणवत्ता तक सीमित नहीं रही, बल्कि उनकी गरिमा, सुरक्षा और भविष्य से जुड़ गई है।
प्रदर्शन कर रहीं छात्राओं ने आरोप लगाया कि कॉलेज प्रशासन ने उन्हें परिसर से बाहर निकलने से रोक रखा है और लगातार दबाव बनाया जा रहा है। एक छात्रा ने कहा कि उनके पास हर आरोप से जुड़े सबूत मौजूद हैं और वे किसी भी जांच से पीछे नहीं हटेंगी। छात्राओं की मुख्य मांग है कि कॉलेज के चेयरमैन को तत्काल गिरफ्तार किया जाए और उन्हें इस संस्थान से माइग्रेशन सर्टिफिकेट दिया जाए, ताकि वे किसी अन्य कॉलेज में अपना भविष्य सुरक्षित कर सकें।
खुशी नर्सिंग कॉलेज से जुड़ा विवाद नया नहीं है। इससे पहले भी छात्राओं ने कॉलेज प्रबंधन के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे। उनका कहना था कि कॉलेज में उन्हें जबरन आपत्तिजनक और भद्दे गानों पर नाचने के लिए मजबूर किया जाता है और विरोध करने पर स्टाफ द्वारा डराया-धमकाया जाता है। छात्राओं का आरोप है कि पढ़ाई के नाम पर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए हरियाणा महिला आयोग की चेयरपर्सन ने छात्राओं को हिसार के लघु सचिवालय बुलाया था। वहां छात्राओं ने कॉलेज के चेयरमैन पर सीधे तौर पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए। छात्राओं का कहना है कि चेयरमैन कथित रूप से शराब के नशे में हॉस्टल परिसर में बने कमरों में बेधड़क आता-जाता है और कई बार बाथरूम तक में घुस जाता था, जिससे वे खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी थीं।
छात्राओं ने यह भी आरोप लगाया कि जो छात्राएं चेयरमैन के व्यवहार का विरोध नहीं करतीं या उसके साथ सहयोग करती हैं, उन्हें विशेष सुविधाएं दी जाती हैं और खुले तौर पर उनका जन्मदिन जैसे आयोजन भी किए जाते हैं। इसके विपरीत, विरोध करने वाली छात्राओं को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, उन्हें बेवजह परेशान किया जाता है और डर का माहौल बनाया जाता है।
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान कॉलेज संचालक भी बैठक में मौजूद रहा और बार-बार यह मांग करता रहा कि उसे भी अपनी बात रखने का अवसर दिया जाए। हालांकि, छात्राओं का कहना है कि वे अब किसी भी दबाव में नहीं आएंगी और न्याय मिलने तक अपनी आवाज बुलंद करती रहेंगी।
मामले ने न केवल शिक्षा संस्थानों में छात्राओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि प्रशासन और नियामक संस्थाओं की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। अब सभी की निगाहें प्रशासन और जांच एजेंसियों पर टिकी हैं कि वे इस संवेदनशील मामले में कितनी तेजी और निष्पक्षता से कार्रवाई करते हैं।





