घृत पर्व : माता वज्रेश्वरी देवी कांगड़ा की पावन गाथा 

सतपाल घृतवंशी: राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री, माता सती ने कनखल नामक स्थान पर अपने पिता द्वारा किए जा रहे यज्ञ में अपने पति भगवान शिव जी को आमन्त्रित न करने के अपमान को न सहते हुए, यज्ञ कुंड में छलांग लगा कर उस यज्ञ को भ्रष्ट कर दिया था ।  जब भगवान शिव को अपने गणों द्वारा इस घटना की सूचना मिली तो उन्होंने माता सती के जलते हुए शरीर को उठाया और उसे लेकर सती के वियोगी में तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे ।  तब भगवान विष्णु द्वारा उन का यह वियोग नहीं देखा गया ।  फिर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर डाले और वे टुकड़े पृथ्वी पर गिरने लगे ।  इसी तरह से जहां-जहां, जिस-जिस स्थान पर माता सती के शरीर के अंग गिरते गए, वहां-वहां उस अंग के नाम से पृथ्वी पर देवियां प्रकट होती गईं 

माना जाता है कि नगरकोट धाम कांगड़ा में माता सती के शरीर का वाया वक्ष स्थल गिरा था, जिसे आज माता वज्रेश्वरी देवी के नाम से पूजा जाता है ।  वज्रेश्वरी का अर्थ है वज्र धारण करने वाली अर्थात वज्र वक्षे माता, जो कांगड़ा में स्तनाकार पिण्डी के  रूप में विराजमान है ।  माता वज्रेश्वरी देवी जी को माता ” जालपा ” के नाम से भी जाना जाता है जो कि माता का प्राचीन नाम है ।  जालपा का अर्थ -“जा ” से जन्म देने वाली, ” ल ” से लय यानि नाश करने वाली और ” पा ” से पालन करने वाली माता अर्थात जन्म देने वाली भी यही है, नाश करने वाली भी यही है और पालन करने वाली भी यही है ।     

  • कांगड़ा में माता वज्रेश्वरी देवी के प्रकट होने की गाथा घृत जाति के स्थानीय मूल निवासी बतलाते हैं कि जिस स्थान पर आज माता वज्रेश्वरी देवी का मंदिर है,  बहां पर पहले आदिकाल में घृत जाति के लोगों के खेत हुआ करते थे ।  उन खेतों में एक वार माघ मास की मकर संक्रांति वाले दिन घृत जाति का एक किसान गेंहू की बिजाई कर रहा था ।  हल चलाते-चलाते जब उसका हल एक गोल सी पत्थर की पिण्डी से टकराया तो उस में से लहू बहने लगा ।  किसान चकित हुआ ; उसने सोचा कि यह तो किसी देवी-देवता की पिण्डी है ।  वह उसी समय हल छोड़ कर शीघ्रता से अपने घर गया और बहां से देसी घी लाकर उस पिण्डी पर घी का लेप कर दिया ।  घी का लेप करते ही पिण्डी में से लहू बहना बन्द हो गया ।  देखते ही देखते माता उसके सामने माता प्रकट हुई और वह माता को पूजने लगा ।  वस उसी दिन से हर वर्ष मकर संक्रांति वाले दिन माता वज्रेश्वरी देवी की पिण्डी को शुद्ध देसी घी का लेप करके घृत मण्डप बनाया जाने लगा और सातवें दिन उस घी को उतार कर श्रद्धालुओं में प्रसाद के रूप में बांटा जाने लगा ।  अर्थात घृत मण्डप पर्व मनाया जाने लगा ।  अगर आज भी माता वज्रेश्वरी देवी की पिण्डी को स्नान करवाते समय ध्यान से देखा जाए तो उस के ऊपर लगे हल  (पहाड़ी भाषा में लुहालू) के निशान साफ दिखाई देते हैं, जो कि उपरोक्त तथ्यों का शाश्वत प्रमाण है और इसी से यहां माता की पिण्डी के रूप में पूजा की जाती है ।     
  • घृत मण्डप बनने के उपरान्त यानि माघ महीने के पश्चात् ज्येष्ठ महीने में गेंहू की फसल निकलने के उपरान्त स्थानीय घृत जाति के लोगों द्वारा माता वज्रेश्वरी देवी को ओरा चढ़ाने (नयी फसल का अन्न चढ़ाने )और जातर देने की प्रथा भी शुरू की गई ।  आज भी कांगड़ा भवन के  घृत जाति के स्थानीय लोग अपनी संस्कृति के अनुसार अपने पूर्वजों के रीति-रिवाज का अनुकरण करते हुए प्रति   वर्ष ज्येष्ठ महीने के प्रथम रविवार वाले दिन माता वज्रेश्वरी देवी की जातर देते हैं ।  इस दिन बिरादरी के किसी एक व्यक्ति के घर से जहां कोई शुभ हुआ हो,उसके घर से सभी सपरिवार इकठ्ठे होकर ,ढोल नगारे, नरसिंगा और अन्य पारम्परिक वाद्य यंत्र बजाते हुए माता वज्रेश्वरी देवी  के मंदिर में जातर लेकर जाते हैं । माता को समस्त पूजा सामग्री और भेंट बगैरा अर्पित कर के हलवा, फल और प्रसाद का भोग लगाया जाता है । उस समय बिरादरी के किसी ज्येष्ठ व्यक्ति द्वारा पुजारी से पूजा करवा कर अगले वर्ष की शुभ कामना हेतु अरदास करवा कर समस्त विरादरी के लोगों के लिए मंगल कामना की जाती है ।  माता के मंदिर के ऊपर एक बड़े आकार का सुनहरी गोटा जड़ित झण्डा चढ़ाया जाता है ।  माता का गुणगान करके मन्दिर में आए सभी लोगों को हलवे का प्रसाद बांटा जाता है ।  घर बापिस आने पर अगले वर्ष के लिए जातर ले जाने की लिखित रूप से योजना बनाई जाती है ।  

कहा जाता है कि जब माता वज्रेश्वरी देवी प्रकट हुई थी तो उसके पश्चात हिन्दूओं के सभी देवी-देवता व तीर्थ माता वज्रेश्वरी देवी के दर्शन करने कांगड़ा पहुंचे थे  और माता के दर्शन करने के उपरान्त वे सभी के सभी आंशिक रूप से कांगड़ा में ही स्थापित हो गये । यहां माता वज्रेश्वरी देवी की पिण्डी की वायी तरफ एकादशी और भद्र काली माता की पिण्डियां , प्रांगण में सभी देवी-देवता, मन्दिर की पिछली तरफ कपाल भैरव, महांकाल चन्द्र कूप ,शहर में चक्र कुण्ड जहां राजा जालन्धर की पत्नी वृन्दा के शाप से बचने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने छिप कर माता वज्रेश्वरी देवी की शरण ली थी । यहीं पर ब्रह्म कुण्ड , विष्णु कुण्ड और शिव कुण्ड हैं ।  यहां से कुछ ही दूरी पर पूर्व की ओर सूरज कुण्ड है जिस के बीच में शिव लिंग है ।  पुराने हिमाचल के बहुत सारे लोग इसे अपना कुल देवता मानते हैं ।  वे अपने देवी-देवताओं सहित यहां दर्शन करने आते हैं ।  पास में ही बाबा बीर भद्र और महाकाल के प्राचीन   मन्दिर हैं ।  कुछेक विद्वानों का मत है कि यह वही स्थान है जहां माता सती ने यज्ञ कुण्ड में छलांग लगाई थी  ।  इस बात का वर्णन विशाल जालन्धर पीठ महात्म्य और जालन्धर पीठ दीपिका में मिलता है । यहीं पर चन्द्र भागा , प्रयाग,  अर्ध गाया,  कर्म नाश नदी है ।  साथ में कुरुक्षेत्र, मणिकरण,  गुप्त गंगा,  बाणगंगा, और हरिद्वार तीर्थ स्थान है ।  बाणगंगा किनारे हरिद्वार के पास ही अच्छरा कुण्ड है, जहां राजा पुरूरवा ने नित्य स्नान कर के भगवान शिव की तपस्या की थी और उन से मनवांछित फल पाया था ।

यहीं पर पुराना कांगड़ा में इन्द्रेश्वर महादेव,  किले के भीतर कपूर सागर, एक मन्दिर में भगवान आदिनाथ की प्राचीन मूर्ति, प्राचीन भैरों बाबा मन्दिर जो लुप्त है ।  किले के बाहर गौ मुख जल स्रोत, रामेश्वर महादेव, वटुक भैरव, इन्द्रेश्वर महादेव, संगम तीर्थ,  पाताल गंगा, माता हिंग्लाज का मन्दिर,  जग सुन्दरी पहाड़ी, जयन्ती माता,  कालका माता, लंका पुरी, गांव सौहड़ा में प्रचीन केदारनाथ धाम मन्दिर, माता वज्रेश्वरी देवी के मंदिर की दोनों तरफ पार-लाहड़ी और पाडली नामक फूलों के बगीचे, जहां आज भवन बने है, शहर के मध्य में विशाल कूपर तालाब-जिस पर आज डी ए वी कालेज बना है ।  इन के अतिरिक्त यहां और भी नये -पुराने मन्दिर और तीर्थ स्थान हैं  ।  जालन्धर पीठ  (कांगड़ा ) में इन धार्मिक स्थानों के दर्शन करने के लिए चम्बापतन के पास प्राचीन तीर्थ स्थान ” महाकालेश्वर ” को प्रवेश द्वार माना गया हैं ।

ये सभी मन्दिर व तीर्थ स्थान मुक्ती देने वाले हैं ।

घृत पर्व में माता की पिण्डी से उतारे गए घी को शरीर पर लगाने से जोड़ों के दर्द और आदि-व्यादियों के रोगों से राहत मिलती है पर आंखों में लगाना और खाना वर्जित हैंं ।  अब  सन 2022 से हिमाचल प्रदेश सरकार ने घृत पर्व उत्सव को जिला स्तरीय उत्सव घोषित कर दिया है ।

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