न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बढ़ी बहस: किसान आंदोलन के बीच उभरी नई चुनौतियां

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बढ़ी बहस: किसान आंदोलन के बीच उभरी नई चुनौतियां

पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर जारी किसान आंदोलन ने देशभर में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी को लेकर बहस को फिर से गरमा दिया है। किसान स्वामीनाथन कमीशन के फार्मूले C2+50% के अनुसार फसलों की लागत का आकलन करते हुए MSP तय करने और उसे कानूनी रूप से लागू करने की मांग कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि MSP की गारंटी के बिना उनकी फसलों को सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ रहा है।

हालांकि, MSP पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि एक समान MSP कैसे सभी राज्यों के किसानों को लाभ पहुंचा सकती है, जब हर राज्य में फसलों की उत्पादन लागत अलग-अलग होती है। मौजूदा व्यवस्था कुछ राज्यों के किसानों को अत्यधिक लाभ पहुंचा रही है, जबकि अन्य राज्यों के किसान इससे वंचित रह जाते हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को धान और गेहूं की MSP का सबसे अधिक फायदा मिलता है, जबकि महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के किसानों को सीमित लाभ मिल पाता है।

किसानों की आय और MSP का असमान लाभ

अप्रैल 2024 से शुरू होने वाले रबी मार्केटिंग सीजन के लिए केंद्र ने गेहूं की MSP 2275 रुपये प्रति क्विंटल तय की है। पंजाब में गेहूं की उत्पादन लागत केवल 832 रुपये प्रति क्विंटल आती है, जिससे किसानों को प्रति क्विंटल 1433 रुपये का सीधा लाभ होता है। इसी प्रकार, हरियाणा में गेहूं उत्पादन की लागत 988 रुपये प्रति क्विंटल है, जिससे किसानों को प्रति क्विंटल 1287 रुपये का फायदा मिल रहा है। इसके विपरीत, महाराष्ट्र में गेहूं की उत्पादन लागत 2195 रुपये प्रति क्विंटल है, जिससे किसानों को प्रति क्विंटल मात्र 80 रुपये का लाभ मिल रहा है।

धान की MSP भी ऐसी ही असमानता दिखाती है। खरीफ मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए धान की MSP 2183 रुपये प्रति क्विंटल थी। पंजाब के किसानों को धान की उत्पादन लागत 864 रुपये प्रति क्विंटल आती है, जिससे उन्हें 1319 रुपये का लाभ मिला। दूसरी ओर, महाराष्ट्र में धान की उत्पादन लागत 2839 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो MSP से काफी अधिक है। इससे स्पष्ट है कि MSP की मौजूदा व्यवस्था केवल कुछ गिने-चुने राज्यों को ही लाभ पहुंचा रही है, जबकि बाकी राज्यों के किसानों के लिए यह लाभदायक नहीं है।

क्यों अलग होती है फसलों की लागत?

हर राज्य में फसलों की लागत अलग-अलग होने के पीछे कई कारण हैं। मजदूरी, डीजल, खाद, कीटनाशक, बिजली, पानी और बीजों की कीमतें हर राज्य में अलग होती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ राज्यों में किसानों को मुफ्त बिजली और पानी मिल जाता है, जबकि कुछ राज्यों में किसानों को इसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ती है। इसी तरह, श्रमिकों की मजदूरी और फसल बीमा की व्यवस्था भी राज्य दर राज्य भिन्न होती है। इन सब कारणों से फसलों की उत्पादन लागत में भारी अंतर आता है, जो MSP की एक समानता को अव्यवहारिक बना देता है।

CACP की भूमिका और राज्यों की अनदेखी

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) MSP तय करने की प्रक्रिया में राज्यों की सिफारिशों को नजरअंदाज कर देता है। CACP अलग-अलग राज्यों की फसलों की औसत लागत निकालकर एक राष्ट्रीय MSP तय करता है, जो कि वास्तविकता से कोसों दूर होती है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र सरकार ने खरीफ मार्केटिंग सीजन 2020-21 के लिए धान की MSP 3968 रुपये प्रति क्विंटल की मांग की थी, जबकि केंद्र ने इसे केवल 1868 रुपये प्रति क्विंटल तय किया। इसी प्रकार, बिहार और ओडिशा की सिफारिशों को भी दरकिनार कर दिया गया।

MSP पर कानूनी गारंटी से पहले भेदभाव का सवाल

किसान संगठनों की मांग है कि MSP को कानूनी गारंटी मिलनी चाहिए, ताकि हर किसान को उसकी फसल का सही दाम मिल सके। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि MSP पर कानूनी गारंटी से पहले इसकी मौजूदा भेदभावपूर्ण व्यवस्था को सुधारना जरूरी है। जब तक अलग-अलग राज्यों के किसानों को उनकी लागत के अनुसार लाभ नहीं मिलेगा, तब तक MSP का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। MSP का फायदा छोटे किसानों तक पहुंचे और इसका दायरा पंजाब और हरियाणा से आगे बढ़कर देश के सभी किसानों तक फैले, इसके लिए नीतिगत सुधारों की सख्त जरूरत है।

Title Tag: Why MSP Needs a Fair Overhaul Before Legal Guarantee for Farmers
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