हरियाणा की दोपहर की तपती गर्मी और आसमान से बरसती धूप ने किसानों की परेशानियों को पहले ही कई गुना बढ़ा दिया है, लेकिन अब बिजली संकट ने उनकी मुश्किलें और अधिक गहरा दी हैं। खासकर राज्य के उन ग्रामीण इलाकों में, जहां अधिकतर किसान सब्जी की खेती पर निर्भर हैं, वहां बिजली की लगातार कटौती अब फसलों की जान ले रही है। खेतों में सिंचाई के लिए जरूरी पंप मशीनें बिजली के इंतज़ार में बंद पड़ी हैं, और खेतों की हरियाली अब मुरझा रही है।
राज्य के कई इलाकों में किसानों की यही कहानी है—खेत हैं, फसलें हैं, मेहनत है, लेकिन बिजली नहीं है। कई गांवों में तो हालात इतने गंभीर हैं कि खेतों में हफ्तों तक बिजली नहीं पहुंचती, और अगर आती भी है तो महज कुछ घंटों के लिए। यह संकट तब और बढ़ जाता है जब मिर्च जैसी गर्मी में फलने वाली फसलें समय पर पानी न मिलने के कारण सूखने लगती हैं। ऐसी फसलें जिनमें किसान ने पूरे साल की मेहनत और पूंजी लगा रखी है, अब बर्बादी के कगार पर हैं।
बिजली विभाग से की गई शिकायतों पर भी सिर्फ औपचारिक जवाब मिलते हैं—कभी ट्रांसफॉर्मर में फॉल्ट, कभी ज्यादा गर्मी की वजह से ब्रेकर ठप। लेकिन इस “फॉल्ट” का समाधान महीनों बीत जाने के बाद भी नहीं हो पाया है। गांवों में न तो जनरेटर हैं, और न ही सभी किसान डीजल पंप का खर्च उठा सकते हैं। डीजल की आसमान छूती कीमतों के बीच जनरेटर चलाना हर किसान के बस की बात नहीं है। ऐसे में खेतों की प्यास बुझाना एक असंभव सी चुनौती बन गया है।
इस भीषण गर्मी में बिजली की अनुपलब्धता केवल फसलों को नहीं झुलसा रही, बल्कि किसानों की उम्मीदों और आत्मविश्वास को भी धीरे-धीरे खत्म कर रही है। जिन खेतों से जीवन चलता है, वही खेत अब बिजली के बिना बंजर बनते जा रहे हैं। कई इलाकों में सब्जियों की खेती प्रमुख आय का स्रोत है, और बिजली न होने से पूरा कृषि चक्र बिगड़ गया है।
किसानों की यह स्थिति न केवल चिंता का विषय है, बल्कि एक चेतावनी भी है कि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में कृषि व्यवस्था किस कदर चरमरा सकती है। किसान अब प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि खेतों के लिए बिजली आपूर्ति को प्राथमिकता दी जाए। यह केवल फसल बचाने का नहीं, बल्कि किसान की मेहनत, सम्मान और भविष्य को बचाने का सवाल है।
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